मीराँबाई की पदावली पृ. 27

मीराँबाई की पदावली

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काव्यत्व

इनका सब कुछ करने का और सब से बड़ा लक्ष्य ‘साँवरिया’ का दर्शन ही जान पड़ता है।[1]

संयोग का वर्णन

मीराँबाई द्वारा किये गये तीसरी अवस्था अथवा संयोग वा मिलन के वर्णनों में, स्वभावतः आनन्द एवं उत्साह के भाव प्रधानरूप से लक्षित होते हैं। उनकी शैली कहीं कहीं परम्परागत साहित्यिक पद्धति और अन्यत्र संत कवियों की वर्णन प्रणाली से मेल खाती हुई जान पड़ती है। उनकी विशेषता इनके अनतर्गत, ‘सावन’ व ‘होली’ के उपयुक्त उल्लेखों के समाविष्ट कर लेने में अधिक दीख पड़ती है। ‘सावन’ के प्रसंग में आयी हुई-

‘‘उमँग्यो इन्द चहूदिसि बरसै, दामणि छोडी़ लाज।
धरती रूप नवा नवा धरिया, इन्दु मिलण कै काज’’॥[2]

और उसी प्रकार ‘होली’ के प्रसंग की- ‘‘उड़त गुलाल लाल भयो अम्बर, बरसत रंग अपार रे। घट के सब पट खोल दिये हैं, लोकलाज सब डार रे॥’’[3] पंक्तियों में, अपने प्रियतम से मिलती हुई, ‘व्याकुल विरहिणी मीराँ’ के हृदय का जीता जागता चित्र हमारे सामने आ जाता है। उनकी तन्मयता प्रदर्शित करने वाली पंक्तियों में इन्हें श्रेष्ठ स्थान मिलना चाहिए।

वस्तु वर्णन

मीराँबाई के वर्णन कौशल की कुछ बानगी हम उनके किये सौन्दर्य वर्णन में ऊपर देख चुके हैं। उनमें तथा[4]में आये राधा के वस्त्राभूषणों के विवरण में हम अधिकतर उनके परम्परानुसरण के ही उदाहरण पाते हैं। उनकी विशेषताओं द्वारा प्रभावित सब से अच्छे सौन्दर्य वर्णन के नमूनों में तो हम उनके ‘‘कानाँ किन गूँथी जुल्फाँ कारियाँ,’’ आदि[5] और ‘सखी, म्हारो कानूड़ो कलेजे की कोर’ आदि[6] को ही उपस्थित कर सकते हैं।

मीराँबाई द्वारा किये गये भगवान् की महिमा के वर्णन में हमें उनकी अलौकिक शक्ति एवं भक्तवत्सलता के उल्लेख प्रायः उसी रंग में मिलते हैं जैसे अन्य वैष्णव कवियों की रचनाओं में पाये जाते हैं। कहीं-कहीं पर केवल उनके व्यक्तित्व की छाप अवश्य झलक जाती है। उनके वस्त्रवर्णनों में ‘वृन्दावन’ एवं ‘अगमदेस’ के चित्रण[7] बडत्रे चित्ताकर्षक हैं। उनमें प्रदर्शित वस्तुस्थिति एवं दिनचर्या के विवरण स्वाभाविक उतरे हैं। इसी प्रकार ऋतु वर्णन करते समय मीराँबाई ने वर्षा का वर्णन बड़े विशद रूप से किया है। इसमें विरहावस्था, प्रतीक्षा एवं मिलन, इन तीनों की भिन्न-भिन्न दशाओं के अनुसार एक ही ऋतु भिन्न भिन्न प्रकार की सजावटें लेकर सामने आती जान पड़ती हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पद 154
  2. पद 141
  3. पद 151
  4. पद 172
  5. पद 165
  6. पद 167
  7. पद 163 व 192

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