मिले हनु, पूछी प्रभु यह बात ।
महा मधुर प्रिय वानी बोलत, साखामृग, तुम किहिं के तात?
अंजनि कौ सुत, केसरि कैं कुल पवन-गवन उपजायौ गात।
तुम को बीर,नीर भरि लोचन, मीन हीन-जल ज्यौं मुरझात?
दसरथ-सुत कोसलपुर-बासी, त्रिया हरी तातैं अकुलात।
इहिं गिरि पर कपिपति सुनियत है, बालि-त्रास कैसैं दिन जात।
महादीन, बलहीन, बिकल अति, पवन-पूत देखे बिलखात।
सूर सुनत सुग्रीव चले उठि, चरन गहे पूछी कुसलात॥69॥