मिलता जाज्यो हो गुरु ज्ञानी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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मिलता जाज्यो हो गुरु ज्ञानी, थाँरी सूरत देखि लुभानी ।। टेक ।।
मेरो नाम बूझि तुम लीज्यो, मैं हूँ बिरह दिवानी ।
रात दिवस कल नाहिं परत है, जैसे मीन बिन पानी ।
दरस बिना मोहिं कछु न सुहावे, तलफ तलफ मर जानी ।
मीराँ तो चरणन की चेरी, सुन लीजे सुखदानी ।।128।।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मिलता जाज्यो = मिलते जाइयेगा। तलफ... मर जानी = तड़प-तड़प कर मरती जा रही हूँ। सुखदानी = सुख पहुचाने वाले।

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