मानौ माई सबनि यहै है भावत।
अब उहिं देस स्याम सुंदर कहँ, कोउ न समौ सुनावत।।
धरत न बन नव पत्र फूल फल, पिक बसंत नहिं गावत।
मुदित न सर सरोज अलि गुंजत, पवन पराग उड़ावत।।
पावस विविध वरन बर बादर, उमड़ि न अंबर छावत।
दादुर मोर कोकिला चातक, बोलत बचन दुरावत।।
ह्याँ ही प्रगट निरंतर निसि दिन, हठ करि विरह बढ़ावत।
‘सूर’ स्याम पर पीर न जानत, कत सरवज्ञ कहावत।। 3323।।