माधव या लगि है जग जीजत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


माधव या लगि है जग जीजत।
जातै हरि सौ प्रेम पुरातन, बहुरि नयी करि लीजत।।
कहँ ह्वाँ तुम जदुनाथ सिंधु तट, कहँ हम गोकुल वासी।
वह वियोग, यह मिलन कहाँ अब, काल चाल औरासी।।
कहँ रवि राहु कहाँ यह अवसर, विधि सजोग बनायो।
उहिं उपकार आजु इन नैननि, हरि दरसन सचुपायी।।
तब अरु अब यह कठिन परम अति, निमिषहुँ पीर न जानी
‘सूरदास’ प्रभु जानि आपने, सबहिनि सी रुचि मानी।। 4284।।

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