माई हौं गिरधरन के गुन गाऊँ -कुम्भनदास माई हौं गिरधरन के गुन गाऊँ। मेरे तो ब्रत यहै निरंतर, और न रुचि उपजाऊँ ॥ खेलन ऑंगन आउ लाडिले, नेकहु दरसन पाऊँ। 'कुंभनदास हिलग के कारन, लालचि मन ललचाऊँ ॥ संबंधित लेख देखें • वार्ता • बदलेंकुम्भनदास के पद भक्तन को कहा सीकरी सों काम • कितै दिन ह्वै जु गए बिनु देखे • माई हौं गिरधरन के गुन गाऊँ • कहा करौं वह मूरति जिय ते न टरई • सीतल सदन में सीतल भोजन भयौ • बैठे लाल फूलन के चौवारे • तुम नीके दुहि जानत गैया • संतन को कहा सीकरी सों काम • रसिकिनि रस में रहत गड़ी • साँझ के साँचे बोल तिहारे • आई ऋतु चहूँदिस फूले द्रुम • हमारो दान देहो गुजरेटी • गाय सब गोवर्धन तें आईं • भक्त इच्छा पूरन श्री यमुने जु करता • श्री यमुने पर तन मन धन प्राण वारो • श्री यमुने अगनित गुन गिने न जाई • श्री यमुने रस खान को शीश नांऊ वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः