महा दुखित दोउ मेरे नैन -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


महा दुखित दोउ मेरे नैन ।
जा दिन तै हरि चले मधुपुरी, नैकु न कबहूँ कीन्हौ सैन ।।
भरे रहत अति नीर न निघटत, जानत नहिं कब दिन कब रैन ।
महा दुखित अतिही भ्रम माते, बिन देखे पावत नहि चैन ।।
जौ कबहूँ पलकौ नहि खोलति, चाहत चाहति मूरति मैन ।
छाँड़त छिन मैं ये जो सरीरहि, गहि कै व्यथा जात हरि लैन ।।
रसना यहई नेम लियौ है, और नहीं भापै मुख बैन ।
'सूरदास' प्रभु जबतै बिछुरे, तब तै सब लागे दुख दैन ।। 3242 ।।

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