महा दुखित दोउ मेरे नैन ।
जा दिन तै हरि चले मधुपुरी, नैकु न कबहूँ कीन्हौ सैन ।।
भरे रहत अति नीर न निघटत, जानत नहिं कब दिन कब रैन ।
महा दुखित अतिही भ्रम माते, बिन देखे पावत नहि चैन ।।
जौ कबहूँ पलकौ नहि खोलति, चाहत चाहति मूरति मैन ।
छाँड़त छिन मैं ये जो सरीरहि, गहि कै व्यथा जात हरि लैन ।।
रसना यहई नेम लियौ है, और नहीं भापै मुख बैन ।
'सूरदास' प्रभु जबतै बिछुरे, तब तै सब लागे दुख दैन ।। 3242 ।।