महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 16 श्लोक 44-61

षोडश (16) अध्याय: स्‍त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)

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महाभारत: स्‍त्रीपर्व: षोडश अध्याय: श्लोक 44-61 का हिन्दी अनुवाद

'ये कुरुकुल की स्त्रियां रोना बंद करके स्वजनों का चिन्तन करती हुई परिजनों सहित उन्हीं की खोज में जाती और दुखी होकर उन-उन व्यक्तियों से मिल रही हैं। कौरव वंश की युवतियों के सूर्य और सुवर्ण के समान कान्तिमान मुख रोष और रोदन से ताम्रवर्ण के हो गये हैं। केशव! सुन्दर कान्ति से सम्पन्न, एकवस्त्रधारिणी तथा श्याम गौरवर्णवाली दुर्योधन की इन सुन्दरी स्त्रियों की टोलियों को देखो। एक दूसरी की रोदन-ध्वनि से मिल जाने के कारण इनके विलाप का अर्थ पूर्णरूप से समझ में नहीं आता, उसे सुनकर अन्य स्त्रियां भी कुछ नहीं समझ पाती हैं। ये वीर वनिताऐं लंबी सांस खींचकर स्वजनों को पुकार पुकार कर करूण विलाप करके दुख से छटपटाती हुई अपने प्राण त्याग देना चाहती हैं। बहुत सी स्त्रियां स्वजनों की लाशों को देखकर रोती, चिल्लाती और विलाप करती हैं। कितनी ही कोमल हाथों वाली कामिनियां अपने हाथों से सिर पीट रही हैं। कटकर गिरे हुए मस्तकों, हाथों और सम्पूर्ण अंगों के ढेर लगे हैं। ये सभी एक के ऊपर एक करके पड़े हैं। उनसे यहाँ की सारी पृथ्वी ढकी हुई जान पड़ती है। इन बिना मस्तक के सुन्दर धड़ों और बिना धड़ के मस्तकों को देख-देख कर ये अनुगामिनी स्त्रियां मूर्च्छित सी हो रही हैं।

कितनी ही अचेत-सी होकर स्वजनों की खोज करने वाली स्त्रियां एक मस्तक को निकटवर्ती धड़ के साथ जोड़ करके देखती हैं और जब वह मस्तक उससे नहीं जुड़ता तथा दूसरा कोई मस्तक वहाँ देखने में नहीं आता तो वे दुखी होकर कहने लगती हैं कि यह तो उनका सिर नहीं है। बालों से कट-कट कर अलग हुई बाहों, जांगों और पैरों को जोड़ती हुई ये दुखी अवलाऐं बार-बार मूर्च्छित हो जाती हैं। कितनी ही लाशों के सिर कटकर गायब हो गये हैं, कितनों को मांस भक्षी पशुओं और पक्षियों ने खा डाला है; अतः उनको देखकर भी ये हमारे ही पति हैं, इस रूप में भरत कुल की स्त्रियां पहचान नहीं पाती हैं। मधुसूदन! देखो, बहुत सी स्त्रियां शत्रुओं द्वारा मारे गये भाईयों, पिताओं, पुत्रों और पतियों को देखकर अपने हाथों से सिर पीट रही हैं। खड्ग युक्त भुजाओं और कुण्डलों सहित मस्तकों से ढकी हुई इस पृथ्वी पर चलना फिरना असंभव हो गया है। यहाँ मांस और रक्त की कीच जम गयी है। ये सती साध्वी सुन्दरी स्त्रियां पहले कभी ऐसे दुख में नहीं पड़ी थीं; किन्तु आज दुख के समुद्र में डूब रही हैं। यह सारी पृथ्वी इनके भाइयों, पतियों और पुत्रों से ढक गयी है। जर्नादन! देखो, महाराज धृतराष्ट्र की सुन्दर केशों वाली पुत्रवधुओं की ये कई टोलियां, बछेड़ियों की झुण्ड के समान दिखाई दे रही हैं। केशव! मेरे लिये इससे बढ़कर महान दुख और क्या होगा कि ये सारी बहुऐं यहाँ आकर अनेक प्रकार से आर्तनाद कर रही हैं। माधव! निश्चय ही मैंने पूर्व जन्मों में कोई बड़ा भारी पाप किया है जिससे आज अपने पुत्रों, पौत्रों और भाईयों को यहाँ मारा गया देख रही हूं'। भगवान श्रीकृष्ण को सम्बोधित करके पुत्र शोक से व्याकुल हो इस प्रकार आर्त विलाप करती हुई गान्धारी ने युद्ध में मारे गये अपने पुत्र दुर्योधन को देखा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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