महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 8 श्लोक 20-38

अष्‍टम (8) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)

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महाभारत: स्त्री पर्व: अष्‍टम अध्याय: श्लोक 20-38 का हिन्दी अनुवाद

देवताओं का जो कार्य मैंने प्रत्‍यक्ष अपने कानों से सुना है, वह तुम्‍हें बता रहा हूँ, जिससे तुम्‍हारा मन स्थिर हो सके। पूर्व काल की बात है, एक बार मैं यहाँ से शीघ्रतापूर्वक इन्‍द्र की सभा में गया। वहाँ जाने पर भी मुझे कोई थकावट नहीं हुई; क्‍योंकि मैं इन सब पर विजय पा चुका हूँ। वहाँ उस समय मैंने देखा कि इन्‍द्र की सभा में सम्‍पूर्ण देवता एकत्र हुए हैं। अनघ! वहाँ नारद आदि समस्‍त देवर्षि भी उपस्थित थे। पृथ्‍वीनाथ! मैंने वहीं इस पृथ्‍वी को भी देखा, जो किसी कार्य के लिये देवताओं के पास गयी थी। उस समय विश्वधारिणी पृथ्‍वी ने वहाँ एकत्र हुए देवताओं के पास जाकर कहा- ‘महाभाग देवताओं! आप लोगों ने उस दिन ब्रह्मा जी की सभा में मेरे ‍जिस कार्य को सिद्ध करने की प्रतिज्ञा की थी, उसे शीघ्र पूर्ण की‍जिये’। उसकी बात सुनकर विश्ववन्दित भगवान विष्‍णु ने देवसभा में पृथ्‍वी की ओर देखकर हँसते हुए कहा- ‘शुभे! धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में जो सबसे बड़ा और दुर्योधन नाम से‍ विख्‍यात है, वही तेरा कार्य सिद्ध करेगा। उसे राजा के रुप में पाकर तू कृतार्थ हो जायेगी। ‘उसके लिये सारे भूपाल कुरुक्षेत्र में एकत्र होंगे और सुदृढ़ शस्त्रों द्वारा परस्‍पर प्रहार करके एक दूसरे का वध कर डालेंगे। ‘देवि! इस प्रकार उस युद्ध में तेरे भार का नाश हो जायेगा। शोभने! अब तू शीघ्र अपने स्‍थान पर जा और समस्‍त लोकों को पूर्ववत धारण कर’। राजन! नरेश्वर! यह जो तुम्‍हारा पुत्र दुर्योधन था, वह सारे जगत का संहार करने के लिये क‍लि का मूर्तिमान अंश ही गान्‍धारी के पेट से पैदा हुआ था। वह अमर्षशील, क्रोधी, चञ्चल और कूटनीति से काम लेने वाला था। दैव योग से उसके भाई भी वैसे ही उत्‍पन्न हुए! मामा शकुनि और परम मित्र कर्ण भी उसी विचार के मिल गये। ये सब नरेश शत्रुओं का विनाश करने के लिये ही एक साथ इस भूमण्‍डल पर उत्‍पन्न हुए थे। जैसा राजा होता है, वैसे ही उसके स्‍वजन और सेवक भी होते हैं। यदि स्‍वामी धार्मिक हो तो अधर्मी सेवक भी धार्मिक बन जाते हैं। सेवक स्‍वामी के ही गुण-दोषों से युक्त होते हैं, इसमें संशय नहीं है।

महाबाहु नरेश्वर! दुष्‍ट राजा को पाकर तुम्‍हारे सभी पुत्र उसी के साथ नष्‍ट हो गये। इस बात को तत्त्ववेत्ता नारद जी जानते हैं। पृथ्‍वीनाथ! आपके पुत्र अपने ही अपराध से विनाश को प्राप्‍त हुए हैं। राजेन्‍द्र! उनके लिये शोक न करो; क्‍योंकि शोक के लिये कोई उपयुक्‍त कारण नहीं है। भारत! पाण्‍डवों ने तुम्‍हारा थोड़ा-सा भी अपराध नहीं किया है। तुम्‍हारे पुत्र ही दुष्‍ट थे, जिन्‍होंने इस भूमण्‍डल का नाश करा दिया। राजन! तुम्‍हारा कल्‍याण हो। राजसूय यज्ञ के समय देवर्षि नारद ने राजा युधिष्ठिर की सभा में नि:संदेह पहले ही यह बात बता दी थी कि कौरव और पाण्‍डव सभी आपस में लड़कर नष्‍ट हो जायेंगे; अत: कुन्‍तीनन्‍दन! तुम्‍हारे लिये जो आवश्‍यक कर्त्तव्‍य हो, उसे करो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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