सप्तम (7) अध्याय: सौप्तिक पर्व
महाभारत: सौप्तिक पर्व: सप्तम अध्याय: श्लोक 16-31 का हिन्दी अनुवाद
राजेन्द्र! उनके केश भी अग्नि-शिखा के समान प्रतीत होते थे। उनका रोम-रोम प्रज्वलित हो रहा था। उन सबके चार भुजाएँ थीं। नरेश्वर! कितने ही गणों के मुख भेड़ों और बकरों के समान थे। कितनों के मुख, वर्ण और कान्ति शंख के सदृश थे। वे शंख की मालाओं से अलंकृत थे और उनके मुख से शंखध्वनि के समान ही शब्द प्रकट होते थे। कोई समूचे सिर पर जटा धारण करते थे, कोई पांच शिखाएँ रखते थे और कितने ही मूंड मुड़ाये रहते थे। बहुतों के उदर अत्यन्त कृश थे, कितनों के चार दाढें और चार जिह्वाएँ थीं। किन्हीं के कान खूँटी के समान जान पड़ते थे और कितने ही पार्षद अपने मस्तक पर किरीट धारण करते थे। राजेन्द्र! कोई मूँज की मेखला पहने हुए थे, किन्हीं के सिर के बाल घुँघराले दिखायी देते थे, कोई पगड़ी धारण किये हुए थे तो कोई मुकुट। कितनों के मुख बड़े ही मनोहर थे। कितने ही सुन्दर आभूषणों से विभूषित थे। कोई अपने मस्तक पर कमलों और कुमुदों का किरीट धारण करते थे। बहुतों ने विशुद्ध मुकुट धरण कर रखा था। वे भूतगण सैकड़ों और हजारों की संख्या में थे और सभी अद्भुत माहात्म्य से सम्पन्न थे। भारत! उनके हाथों में शतघ्नी, वज्र, मूसल, भुशुण्डी, पाश और दण्ड शोभा पाते थे। उनकी पीठों पर तरकस बँधे थे। वे विचित्र बाण लिये युद्ध के लिये उन्मत्त जान पड़ते थे उनके पास ध्वजा, पताका, घंटे और फरसे मौजूद थे। उन्होंने अपने हाथों में बड़े-बड़े पाश उठा रखे थे, कितनों के हाथों में डंडे, खम्भे और खड्ग शोभा पाते थे तथा कितनों के मस्तक पर सर्पों के उन्नत किरीट सुशोभित होते थे। कितनों ने बाजूबंदों के स्थान में बड़े-बड़े सर्प धरण कर रखे थे। कितने ही विचित्र आभूषणों से विभूषित थे, बहुतों के शरीर धूलि-धूसर हो रहे थे। कितने ही अपने अंगों में कीचड़ लपेटे हुए थे। उन सबने श्वेत वस्त्र और श्वेत फलों की माला धारण रखी थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज