षट्सप्ततितम (76) अध्याय: सभा पर्व (अनुद्यूत पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: षट्सप्ततितम अध्याय: श्लोक 19-24 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! उस समय धर्मराज युधिष्ठिर प्रारब्ध के वशीभूत हो गये थे। महाराज! उन्हें भीष्म, द्रोण और बुद्धिमान विदुर जी दुबारा जूआ खेलने से रोक रहे थे। युयुत्सु, कृपाचार्य तथा संजय भी मना कर रहे थे। गांधारी, कुन्ती, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, वीर विकर्ण, द्रौपदी, अश्वत्थामा, सोमदत्त तथा बुद्धिमान बाह्लिक भी बार-बार रोक रहे थे तो भी राजा युधिष्ठिर भावी के वश होने के कारण जूए से नहीं हटे। शकुनि ने कहा- राजन् हम लोगों के पास बैल, घोडे़ और बहुत-सी दुधारू गौएँ हैं। भेड़ और बकरियों की तो गिनती ही नहीं है। हाथी, खजाना, दास-दासी तथा सुवर्ण सब कुछ हैं। फिर भी (इन्हें छोड़कर) एकमात्र वनवास का निश्चय ही हमारा दाँव है। पाण्डवों! आप लोगों या हम, जो भी हारेंगे, उन्हें वन में जाकर रहना होगा। केवल तेरहवें वर्ष हमें किसी जनसमूह में अज्ञात भाव से रहना होगा। नरश्रेष्ठगण! हम इसी निश्चय के साथ जूआ खेलें। भारत! वनवास की शर्त रखकर केवल एक ही बार पासा फेंकने से जूए का खेल पूरा हो जायेगा। युधिष्ठिर ने उसकी बात स्वीकार कर ली। तत्पश्चात् सुबलपुत्र शकुनि ने पासा हाथ में उठाया और उसे फेंककर कहा- मेरी जीत हो गयी।
इस प्रकार श्रीमहाभारत सभापर्व के अन्तर्गत अनुद्यूत पर्व में युधिष्ठिरपराभव-विषयक छिहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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