चतु:सप्ततितम (74) अध्याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: चतु:सप्ततितम अध्याय: भाग 2 का हिन्दी अनुवाद
भारतश्रेष्ठ! कुन्तीकुमार अर्जुन के साथ बार-बार युद्ध करके जब देवताओं ने यह समझ लिया कि इन्हें समरांगण में पराजित करना असम्भव है, तब वे अर्जुन के बाणों से अत्यन्त-पीड़ित होने के कारण युद्ध से विरत हो गये (भाग खडे़ हुए)। महाराज! प्रलयकाल में जो विनाशसूचक अत्यन्त भयंकर अपशकुन दिखायी देते हैं, वे सभी उस समय प्रत्यक्ष दीखने लगे। तदन्दर सब देवताओं ने एक साथ अर्जुन पर धावा किया; परंतु उस देवसेना को देखकर अर्जुन मन में घबराहट नहीं हुई। वे तुरंत ही तीखे प्राण हाथ में लेकर इन्द्र और देवताओं की ओर देखते हुए प्रलयकाल में सर्वसंहार के काल की भाँति अविचल भाव से खड़े हो गये। राजन्! अर्जुन को मानव समझकर इन्द्र सहित सब देवता उन पर बाण समूहों की बौछार करने लगे। परंतु महातेजस्वीे पार्थ ने शीघ्रतापूर्वक गाण्डीव धनुष लेकर अपने बाण समूहों की वर्षा से देवताओं के बाणों को रोक दिया। पिता जी! यह देख समस्त महाबली देवता पुन: कुपित हो गये और उस युद्ध में मरणधर्मा अर्जुन पर नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों की बौछार करने लगे। अर्जुन ने अपने तीखे बाणों द्वारा देवताओं के छोड़े हुए उन अस्त्र-शस्त्रों के आकाश में ही दो-दो तीन-तीन टुकड़े कर दिये। फिर अधिक क्रोध में भरकर अर्जुन ने अपने धुनष को इस प्रकार खींचा कि वह मण्डलकार दिखायी देने लगा ओर उसके द्वारा सब ओर तीखे सायकों की वृष्टि करके सब देवताओं को घायल कर दिया। देवताओं को युद्ध से भागा हुआ देख महातेजस्वी इन्द्र ने अत्यन्त कुपित हो पार्थ पर बाणों की झड़ी लगा दी। पार्थ ने मनुष्य होकर भी देवताओं के स्वामी इन्द्र को अपने सायकों से बींध डाला। तब देवेश्वर ने अर्जुन पर पत्थरों की वर्षा आरम्भ की। यह देख अर्जुन अत्यन्त अमर्ष में भर गये और अपने बाणों द्वारा उन्होंने इन्द्र की उस पाषाण-वर्षा का निवारण कर दिया। तदनन्तर देवराज इन्द्र ने सव्यसाची अर्जुन के पराक्रम की परीक्षा लेने के लिये पुन: उस पाषाण वर्षा को पहले से भी अधिक बढ़ा दिया। यह देख पाण्डुनन्दन अर्जुन ने इन्द्र का हर्ष बढ़ाते हुए उस अत्यन्त वेगशालिनी पाषाण वर्षा को अपने बाणों से विलीन कर दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज