पंचपंचाशत्तम (55) अध्याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: पंचपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 16-21 का हिन्दी अनुवाद
भरतकुलभूषण! अजमीढ़नन्दन! आपको शत्रु की लक्ष्मी अच्छी नहीं लगनी चाहिये। हर समय न्याय को सिर पर चढ़ाये रखना भी बुद्धिमानों के लिये भार ही है। जो जन्म काल से शरीर आदि की वृद्धि के समान धनवृद्धि की भी अभिलाषा करता है, वह कुटुम्बीजनों में बहुत आगे बढ़ जाता है। पराक्रम करना तत्काल उन्नति का कारण है। जब तक मैं पाण्डवों की सम्पत्ति को प्राप्त कर लूँ, तब तक मेरे मन में दुविधा ही रहेगी। इसलिये या तो मैं पाण्डवों की उस सम्पत्ति को ले लूँगा अथवा युद्ध में मरकर सो जाऊँगा (तभी मेरी दुविधा मिटेगी)। महाराज! आज जो मेरी दशा है, इसमें मेरे जीवित रहने से क्या लाभ है? पाण्डव प्रतिदिन उन्नति कर रहे हैं और हम लोगों की वृद्धि (उन्नति) अस्थिर है- अधिक काल तक टिकने वाली नहीं जान पड़ती है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत सभापर्व के अन्तर्गत द्यूतपर्व में दुर्योधन-संताप-विषयक पचपनवाँ अध्याय पूरा हुआ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
|