चतुश्वत्वारिंशो (44) अध्याय: सभा पर्व (शिशुपालवध पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: चतुश्वत्वारिंश अध्याय: श्लोक 18-38 का हिन्दी अनुवाद
दुरात्मा कृष्ण तो राजा कंस का सेवक है, उनकी गौओं का चरवाहा रहा है। तुम केवल स्वार्थवश इसमें सारे जगत का समावेश कर रहे हो। भारत! तुम्हारी बुद्धि ठिकाने पर नहीं आ रही है। मैं यह बात पहले ही बात चुका हूँ कि तुम भूलिंग पक्षी के समान कहते कुछ और करते कुछ हो। भीष्म! हिमालय के दूसरे भाग में भूलिंग नाम से प्रसिद्ध एक चिड़िया रहती है। उसके मुख से सदा ऐसी बात सुनायी पड़ती है, जो उसके कार्य विपरीत भाव की सूचक होने के कारण अत्यन्त निन्दनीय जान पड़ती है। वह चिड़िया सदा यही बोला करती है ‘मा साहसम्’ (अर्थात साहस का काम न करो), परंतु वह स्वयं ही भारी साहस का काम करती हुई भी यह नहीं समझ पाती। भीष्म! वह मूर्ख चिड़िया मांस खाते हुए सिंह के दाँतों में लगे हुए मांस के टुकड़े को अपनी चोंच से चुगती रहती है। नि:संदेह सिंह की इच्छा से ही वह अब तक जी रही है। पापी भीष्म! इसी प्रकार तुम भी सदा बढ़-बढ़कर बातें करते हो। भीष्म! नि:संदेह तुम्हारा जीवन इन राजाओं की इच्छा से ही बचा हुआ है, क्योंकि तुम्हारे समान दूसरा कोई राजा ऐसा नहीं है, जिसके कर्म सम्पूर्ण जगत से द्वेष करने वाले हों। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! शिशुपाल का यह कटु वचन सुनकर भीष्म जी ने शिशुपाल के सुनते हुए यह बात कही- ‘अहो! शिशुपाल के कथनानुसार मैं इन राजाओं की इच्छा पर जी रहा हूँ, परंतु मैं तो इन समस्त भूपालों को तिनके बराबर भी नहीं समझता’। भीष्म के ऐसा कहने पर बहुत से राजा कुपित हो उठे। कुछ लोगों को हर्ष हुआ तथा कुछ भीष्म की निन्दा करने लगे। कुछ महान् धनुर्धर नरेश भीष्म की वह बात सुनकर कहने लगे- ‘यह बूढ़ा भीष्म पापी और घमण्डी है, अत: क्षमा के योग्य नहीं है। राजाओ! क्रोध में भरे हुए हम सब लोग मिलकर इस खोटी बुद्धि वाले भीष्म को पशु की भाँति गला दबाकर मार डालें अथवा घास फूस की आग में इसे जीते जी जला दें’। उन राजाओं की ये बातें सुनकर कुरुकुल के पितामह बुद्धिमान भीष्म जी फिर उन्हीं नरेशों से बोले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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