अष्टात्रिंश (38) अध्याय: सभा पर्व (अर्घाभिहरण पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: भाग 32 का हिन्दी अनुवाद
द्वारका में जो पुष्करिणियाँ और सरोवर हैं, ये कमल पुष्पों से सुशोभित स्वच्छ जल से भरे हुए हैं। उनकी आभा लाल रंग की है। उनमें सुगन्धयुक्त उत्पल खिले हुए हैं। उनमें स्थित बालू के कण मणियों और मोतियों के चूर्ण जैसे जान पड़ते हैं। वहाँ लगाये हुए बड़े-बड़े वृक्ष उन सरोवरों के सुन्दर तटों की शोभा बढ़ाते हैं। जो वृक्ष हिमालय पर उगते हैं तथा जो नन्दनवन में उत्पन्न होते हैं, उन्हें भी यदुप्रवर श्रीकृष्ण ने वहाँ लाकर लगाया है। कोई वृक्ष लाल रंग के हैं, कोई पीत वर्ण के हैं और कोई अरुण कान्ति से सुशोभित हैं तथा बहुत से वृक्ष ऐसे हैं, जिनमें श्वेत रंग के पुष्प शोभा पाते हैं। द्वारका के उपवनों में लगे हुए पूर्वोक्त सभी वृक्ष सम्पूर्ण ऋतुओं के फलों से परिपूर्ण हैं। सहस्रदल कमल, सहस्रों मन्दार, अशोक, कर्णिकार, तिलक, नागमल्लिका, कुरव (कटसरैया), नागपुष्प, चम्पक, तृण, गुल्म, सप्तपर्ण (छितवन), कदम्ब, नीप, कुरबक, केतकी, केसर, हिंताक, तल, ताटक, ताल, प्रियंगु, वकुल (मौलसिरी), पिण्डिका, बीजूर (बिजौरा), दाख, आँवला, खजूर, मुनक्का, जामुन, आम, कटहल, अंकोल, तिल, तिन्दुक, लिकुच (लीची), आमड़ा, क्षीरिका (काकोली नाम की जड़ी या पिंडखजूर), कण्टकी (बेर), नारियल, इंगुद (हिंगोट), उत्क्रोशकवन, कदलीवन, जाति (चमेली), मल्लिक (मोतिया), पाटल, भल्लातक, कपित्थ, तैतभ, बन्धुजीव (दुपहरिया), प्रवाल, अशोक और काश्मरी (गाँभारी), आदि सब प्रकार के प्राचीन वृक्ष, प्रियंगुलता, बेर, जौ, स्पन्दन, चन्दन, शमी, बिल्व, पलाश, पाटला, बड़, पीपल, गूलर, द्विदल, पालाश, परिभद्रक, इन्द्रवृक्ष, अर्जुन वृक्ष, अश्वत्थ, चिरिबिल्व, सौभंजन, भल्लट, अश्वपुष्प, सर्ज, ताम्बूललता, लवंग, सुपारी तथा नाना प्रकार के बाँस ये सब द्वारकापुरी में श्रीकृष्ण भवन के चारों ओर लगाये हैं। नन्दवन में और चैत्ररथवन जो-जो वृक्ष होते हैं, वे सभी युदपति भगवान श्रीकृष्ण ने लाकर यहाँ सब ओर लगाये हैं। भगवान श्रीकृष्ण के गृहोद्यान में कुमुद और कमलों से भरी हुई कितनी ही छोटी बावलियाँ हैं। सहस्रों कुएँ बने हुए हैं। जल से भरी हुई बड़ी-बड़ी वापिकाएँ भी तैयार करायी गयी हैं, जो देखने में पीत वर्ण की हैं और जिनकी बालुकाएँ लाल हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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