अष्टात्रिंश (38) अध्याय: सभा पर्व (अर्घाभिहरण पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: भाग 16 का हिन्दी अनुवाद
राजन्! भूमिपाल श्रीरघुनाथ जी जिन दिनों सारी पृथ्वी का शासन करते थे, उस समय उनके राज्य में लोग पूर्णत: तृप्ति का अनुभव करते थे। धर्मात्माराज राम के राज्य में पृथ्वी पर सब लोग तपस्या में ही लगे रहते थे और सब के सब धर्मानुरागी थी। श्रीराम के राज्य शासन काल में कोई भी मनुष्य अधर्म में प्रवृत्त नहीं होता था। सबके प्राण और अपान समवृत्ति में स्थित थे। जो पुराणवेत्ता विद्वान हैं, वे इस विषय में निम्नांकित गाथा गाया करते हैं- ‘भगवान श्रीराम की अंगकान्ति श्याम है, युवावस्था हैं, उनके नेत्रों में कुछ कुछ लाली है। वे गजराज जैसे पराक्रमी हैं। उनकी भुजाएँ घटनों तक लंबी हैं। मुख बहुत सुन्दर हैं। कंधे सिंह के समान हैं और वे महान बलशाली हैं। उन्होंने राज्य और भोग पाकर ग्यारह हजार वर्षों तक इस पृथ्वी का शासन किया। प्रजाजनों में ‘राम राम राम’ इस प्रकार केवल राम की ही चर्चा होती थी। राम के राज्य शासन काल में यह सारा जगत राममय हो रहा था। उस समय के द्विज ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के ज्ञान में शून्य नहीं थे। इस प्रकार मनुष्यों में श्रेष्ठ श्रीरामचन्द्र जी ने दण्डकारण्य में निवास करके देवताओं का कार्य सिद्ध किया और पहले के अपराधी पुलस्त्यनन्दन रावण को, जो देवताओं, गन्धर्वों और नागों का शत्रु था, युद्ध में मारा गिराया। इक्ष्वाकु कुल का अभ्युदय करने वाले महाबाहु श्रीराम महान् पराक्रमी, सर्वगुण सम्पन्न और अपने तेज से देदीप्यमान थे। वे इसी प्रकार सेवकों सहित रावण का वध रके राज्य पालन के पश्चात साकेत लोक में पधारे। इस प्रकार परमात्मा दशरथनन्दन श्रीराम के अवतार का वर्णन किया गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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