एकत्रिंश (33) अध्याय: सभा पर्व (राजसूय पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: त्रयस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 12-29 का हिन्दी अनुवाद
नरश्रेष्ठ जनमेजय! राजा युधिष्ठिर बड़ेे प्रसन्न होकर उनसे मिले। उनका विधिपूर्वक स्वागत सत्कार करके कुशल मंगल पूछा और जब वे सूखपूर्वक बैठ गये, तब धौम्य, द्वैपायन आदि ऋत्विजों तथा भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव- चारों भाइयों के साथ निकट जाकर युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से कहा। युधिष्ठिर ने कहा- श्रीकृष्ण! आपकी दया से आपकी सेवा के लिये सारी पृथ्वी इस समय मेरे अधीन हो गयी है। वार्ष्णेय! मुझे धन भी बहुत प्राप्त हो गया है। देवकीनन्दन माधव वह सारा धन मैं विधिपूर्वक श्रेष्ठ ब्राह्मणों तथा हव्यवाहन अग्नि के उपयोग में लाना चाहता हूँ। महाबाहु दाशार्ह! अब मैं आप तथा अपने छोटे भाइयों के साथ यज्ञ करना चाहता हूँ। इसके लिये आप मुझे आज्ञा दें। विशाल भुजाओं वाले गोविन्द! आप स्वयं यज्ञ की दीक्षा ग्रहण कीजिये। दाशार्ह! आपके यज्ञ करने पर मैं पापरहित हो जाऊँगा। प्रभो! अथवा मुझे अपने इन छोटे भाइयों के साथ दीक्षा ग्रहण करने की आज्ञा दीजिये। श्रीकृष्ण! आपकी अनुज्ञा मिलने पर ही मैं उस उत्तम यज्ञ की दीक्षा ग्रहण करूँगा। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तब भगवान श्रीकृष्ण ने राजसूय यज्ञ के गुणों का विस्तारपूर्वक वर्णन करके उनसे इस प्रकार कहा- ‘राजसिंह! आप सम्राट होने योग्य हैं, अत: आप ही इस महान् यज्ञ की दीक्षा ग्रहण कीजिये। आपके दीक्षा लेेने पर हम सब लोग कृतकृत्य हो जायँगे। आप अपने इस अभीष्ठ यज्ञ को प्रारम्भ कीजिये। मैं आपका कल्याण करने के लिये सदा उद्यत हूँ। मुझे आवश्यक कार्य में लगाइये, मैं आपकी सब आज्ञाओं का पालन करूँगा’। युधिष्ठिर बोले- श्रीकृष्ण मेरा संकल्प सफल हो गया, मेरी सिद्धि सुनिश्चित है, क्योंकि हृषिकेश! आप मेरी इच्छा के अनुसार स्वयं ही यहाँ उपस्थित हो गये हैं। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! भगवान श्रीकृष्ण से आज्ञा लेकर भाइयों सहित पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ करने के लिये साधन जुटाना आरम्भ किया। उस समय शत्रुओं का संहार करने वाले पाण्डुकुमार ने योद्धाओं में श्रेष्ठ सहदेव तथा सम्पूर्ण मन्त्रियों को आज्ञा दी। ‘इस यज्ञ के लिये ब्राह्मणों के बताये अनुसार यज्ञ के अंगभूत सामान, आवश्यक उपकरण, सब प्रकार की मांगलिक वस्तुएँ तथा धौम्य जी की तबायी हुई यज्ञोपयोगी सामग्री इन सभी वस्तुओं को क्रमश: जैसे मिलें, वैसे शीघ्र ही अपने सेवक जाकर ले आवें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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