त्रिनवतितम (93) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: त्रिनवतितम अध्याय: श्लोक 33-39 का हिन्दी अनुवाद
इस बात का ध्यान रखे कि कौन राजा मुझसे प्रेम रखते हैं? कौन भय के कारण मेरा आश्रय लिये हुए हैं? इनमें से कौन मध्यस्थ हैं कौन-कौन नरेश मेरे शत्रु बने हुए हैं? राजा स्वयं बलवान् होकर भी कभी अपने दुर्बल शत्रु का विश्वास न करे; क्योंकि ये असावधानी की दशा में बाज पक्षी की तरह झपठा मारते हैं। जो पापात्मा मनुष्य अपने सर्वगुणसम्पन्न और सर्वदा प्रिय वचन बोलने वाले स्वामी से भी अकारण द्रोह करता है, उस पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिये। नहुषपुत्र राजा ययाति ने मानव मात्र के हित में तत्पर हो इस राजोपनिषद् का वर्णन किया है। जो इसमें निष्ठा रखकर इसमे अनुसार चलता है, वह बड़े-बड़े शत्रुओं का विनाश कर डालता है। इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासनपर्व में वामदेव गीताविषयक तिरानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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