एकनवतितम (91) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: एकनवतितम अध्याय: श्लोक 33-49 का हिन्दी अनुवाद
मान्धाता! राजा दुष्टों को दण्ड देने के कारण यम तथा धार्मिकों पर अनुग्रह करने के कारण उनके लिये परमेश्वर के समान है। जब वह अपनी इन्द्रियों को संयम में रखता है, तब शासन में समर्थ होता है और जब संयम में नहीं रखता, तब मर्यादा से नीचे गिर जाता है। जब राजा ऋत्विक, पुरोहित और आचार्य का बिना अवहेलना के सत्कार करके उनको उचित बर्ताव के साथ अपनाता है, तब राजा का धर्म कहलाता है। जैसे यमराज सभी प्राणियों पर समानरूप से शासन करते हैं, उसी प्रकार राजा को भी बिना किसी भेदभाव के समस्त प्रजाओं पर विधिपूर्वक नियन्त्रण रखना चाहिये। पुरुषप्रवर! राजा की उपमा सब प्रकार से हजार नेत्रों वाले इन्द्र से दी जाती है; अतः राजा जिस धर्म को भलीभाँति समझकर निश्चित कर देता है वही श्रेष्ठ धर्म माना गया है। राजन! तुम सावधान होकर क्षमा, विवेक, धृति और बुद्धि की शिक्षा ग्रहण करो। समस्त प्राणियों की शक्ति तथा भलाई-बुराई को भी सदा जानने की इच्छा करो। समस्त प्राणियों को अपने अनुकूल बनाये रखना, दान देना और मीठे वचन बोलना सीखो। नगर और बाहर गाँव वाले लोगों की तुम्हें इस प्रकार रक्षा करनी चाहिये, जिससे उन्हें सुख मिले। तात! जो दक्ष नहीं है, वह राजा कभी प्रजा की रक्षा नहीं कर सकता; क्योंकि यह राज्य का संचालन रूप अत्यन्त दुष्कर कार्य बहुत बड़ा भार है। राज्य की रक्षा तो वही राजा कर सकता है, जो बुद्धिमान और शूरवीर होने के साथ ही दण्ड देने की नीति को भी जानता हो। जो दण्ड देने से हिचकता हो, वह नपुंसक और बुद्धिहीन नरेश कदापि राज्य की रक्षा नहीं कर सकता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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