महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 69 श्लोक 16-29

एकोनसप्ततिम (69) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: एकोनसप्ततिम अध्याय: श्लोक 16-29 का हिन्दी अनुवाद

जो गुणवान्, महान् उत्साही, धर्मज्ञ और साधु पुरुष हों, उन्हें सहयोगी बनाकर धर्मपूर्वक राष्ट्र की रक्षा करने वाला नरेश बलवान् राजाओं के साथ संधि स्थापित करें। यदि यह पता लग जाये कि कोई हमारा उच्छेद कर रहा है, तो परम बुद्धिमान् राजा पहले के अपकारियों को तथा जनता के साथ द्वेष रखने वालों को भी सर्वथा नष्ट कर दे। जो राजा न तो उपकार कर सकता हो और न अपकार कर सकता हो तथा जिसका सर्वथा उच्छेद कर डालना भी उचित नहीं प्रतीत होता हो, उस राजा की उपेक्षा कर देनी चाहिये। यदि शत्रु पर चढ़ाई करने की इच्छा हो तो पहले उसके बलाबल के बारे में अच्छी तरह पता लगा लेना चाहिये। यदि वह मित्रहीन, सहायकों और बन्धुओं से रहित, दूसरों के साथ युद्ध में लगा हुआ, प्रमाद में पड़ा हुआ तथा दुर्बल जान पड़े और इधर अपनी सैनिक शक्ति प्रबल हो तो युद्धनिपुण, सुख के साधनों से सम्पन्न एवं वीर राजा को उचित है कि अपनी सेना को यात्रा के लिये आज्ञा दे दे। पहले अपनी राजधानी की रक्षा का प्रबन्ध करके शत्रु पर आक्रमण करना चाहिये। बल और पराक्रम से हीन राजा भी जो अपने से अत्यन्त शक्तिशाली नरेश हो उसके अधीन न रहे उसे चाहिये कि गुप्तरूप से प्रबल शत्रु को क्षीण करने का प्रयत्न करता रहे। वह शस्त्रों के प्रहार से घायल करके, आग लगाकर तथा विष के प्रयोग द्वारा मूर्च्छित करके शत्रु के राष्ट्र में रहने वाले लोगों को पीड़ा दे। मन्त्रियों तथा राजा के प्रिय व्यक्तियों में कलह प्रारम्भ करा दे। जो बुद्धिमान् राजा राज्य का हित चाहे, उसे सदा युद्ध को टालने का ही प्रयत्न करना चाहिये।

नरेश्वर! बृहस्पति जी ने साम, दान और भेद-इन तीन उपायों से ही राजा के लिये धन की आय बतायी है। इन उपायों से जो धन प्राप्त किया जा सके, उसी से विद्वान् राजा को संतुष्ट होना चाहिये। कुरुनन्दन! बुद्धिमान् नरेश प्रजाजनों से उन्हीं की रक्षा के लिये उनकी आय का छठा भाग करके रूप में ग्रहण करे। मत्त, उन्मत्त आदि जो दस प्रकार के दण्ड़नीय मनुष्य हैं, उनसे थोड़ा या बहुत जो धन दण्ड़ के रूप में प्राप्त हो, उसे पुरवासियों की रक्षा के लिये ही सहसा ग्रहण कर ले। नि:संदेह राजा को चाहिये कि वह अपनी प्रजा को पुत्रों और पौत्रों की भाँति स्‍नेहदृष्टि से देखे, परंतु जब न्‍याय करने का अवसर प्राप्‍त हो, तब उसे स्‍नेहवश पक्षपात नहीं करना चाहिये। राजा न्‍याय करते समय वदा वादी-प्रतिवादी की बातों को सुनने के लिए अपने पास सर्वार्थदर्शी विद्वान पुरुषों को बिठाये रखे, क्‍योंकि विशुद्ध न्‍याय पर ही राज्‍य के प्रतिष्ठित होता है। सोने आदि की खान, नमक, अनाज आदि की मंडी, नाव के घाट तथा हाथियों के यूथ- इन सब स्‍थानों पर होने वाली आय के निरीक्षण के लिए मंत्रियों को अथा अपना हित चाहने वाले विश्‍वसनीय पुरुषों को राजा नियुक्‍त करे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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