अष्टषष्टितम (68) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टषष्टितम अध्याय: श्लोक 38-53 का हिन्दी अनुवाद
जो उस राजा के प्रिय एवं हितसाधन में संलग्न रहकर उसके सर्वलोक भयंकर शासन भार को वहन करता है, वह इस लोक और परलोक दोनों पर विजय पाता है। जो पुरुष मन से भी राजा के अनिष्ट का का चिन्तन करता है, वह निश्चय ही इह लोक में कष्ट भोगता है और मरने के बाद भी नरक में पड़ता है। यह भी एक मनुष्य है ऐसा समझकर कभी भी पृथ्वी पालक नरेश की अवहेलना नही करनी चाहिये; क्योंकि राजा मनुष्य रूप में एक महान देवता है। राजा ही सदा समयानुसार पाँच रूप धारण करता है। वह कभी अग्नि, कभी मृत्यु, कभी कुबेर और कभी यमराज बन जाता है। जब पापात्मा राजा के साथ मिथ्वा बर्ताव करके उसे ठगते है, तब वह अग्निस्वरूप हो जाता है और अपने उग्र तेज से समीप आये हुए उन पापियों को जलाकर भस्म कर देता है। जब राजा गुप्तचरों द्वारा समस्त प्रजाओं की देख- भाल करता है और उन सबकी रक्षा करता हुआ चलता है, तब वह सूर्य रूप होता है।
जब राजा कुपित होेकर अशुद्धाचारी सैकडो़ मनुष्यों का उनके पुत्र, पौत्र और मन्त्रियों सहित संहार कर डालता है, तब मृत्यु रूप होता है। जब वह कठोर दण्ड के द्वारा समस्त अधार्मिक पुरुषों को काबू में करके सन्मार्ग पर लाता है और धर्मात्माओं पर अनुग्रह करतर है, उस वह समय वह यमराज माना जाता है। जब राजा उपकारी पुरुषों को धनरूपी जल की धाराओं से तृप्त करता हे और अपकार करने वाले दुष्टों के नाना प्रकार के रत्नों को छीन लेता है, किसी राज्यहितैषी को धन देता है तो किसी (राज्यविद्रोही) के धन का अपहरण कर लेता है,उस समय वह पृथ्वीपालक नरेश इस संसार मे कुबेर समझा जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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