सप्तषष्टितम (67) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: सप्तषष्टितम अध्याय: श्लोक 36-39 का हिन्दी अनुवाद
राजा का यदि दूसरों के द्वारा पराभव हुआ तो वह समस्त प्रजा के लिये दुःखदायी होता है; इसलिये प्रजा को चाहिये कि वह राजा के लिये छत्र, वाहन, वस्त्र, आभूषण, भोजन, पान, गृह, आसन और शय्या आदि सभी प्रकार की सामग्री भेंट करे। इस प्रकार प्रजा की सहायता पाकर राजा दुर्धर्ष एवं प्रजा की रक्षा करने में समर्थ हो जाता है। राजा को चाहिये कि वह मुस्करा कर बातचीत करे। यदि प्रजावर्ग के लोग उससे कोई बात पूछें तो वह मधुर वाणी में उन्हें उत्तर दे। राजा उपकार करने वालों के प्रति कृतज्ञ और अपने भक्तों पर सुदृढ़ स्नेह रखने वाला हो। उपभोग में आने वाली वस्तुओं को यथायोग्य विभाजन करके उन्हें काम में ले। इन्द्रियों को वश में रखे। जो उसकी ओर देखे, उसे वह भी देखे एवं स्वभाव से ही मृदु, मधुर और सरल हो। इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्वं के अन्तर्गत राजधर्मांनुशासनपर्वं में राष्ट्र के लिये राजा को नियुक्त करने की आवश्यकता का कथनविषयक सरसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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