षट्त्रिंश (36) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: षट्त्रिंश अध्याय: श्लोक 16-29 का हिन्दी अनुवाद
परंतु जो पुरुष अपनी जाति आश्रम तथा कुल के धर्मों का सर्वथा परित्याग कर देते हैं और जो लोग धर्म मात्र को छोड़ बैठते हैं उसके लिए कोई धर्म (प्रायश्चित) नहीं है अर्थात किसी भी प्रायश्चित से उनकी शुद्धि नहीं हो सकती है। यदि प्रायश्चित की आवश्यकता पड़ जाए और धर्म के निर्णय में संदेह उपस्थित हो जाए तो वेद और धर्मशास्त्र को जानने वाले दस अथवा निरंतर धर्म का विचार करने वाले तीन ब्राह्मण उस प्रश्न पर विचार करके जो कुछ कहे उसे ही धर्म मानना चाहिए। बैल, मिट्टी, छोटी छोटी चीटियाँ, श्लेष्मातक[1] (लसोड़ा) और विष– ये सब ब्राह्मण के लिए अभक्ष्य हैं। कांटों से रहित जो मत्स्य हैं, वे सभी ब्राह्मणों के लिए अभक्ष्य हैं। काँटों से रहित जो मत्स्य हैं, वे भी ब्राह्मणों के लिए अभक्ष्य है। कच्छप और उसके सिवा अन्य चार पैर वाले सभी जीव अभक्ष्य है मेंढक और जल मे उत्पन्न होने वाले अन्य जीव भी अभक्ष्य ही हैं। भास, हंस, गरुड़, चक्रवाक, बतख, बगुले, कौए मद्गु[2], गीध, बाज, उल्लू, कच्चे मांस खाने वाले वे सभी हिंसक पशु चार पैर वाले जीव और पक्षी तथा दोनों और दांत और चार दाढ़ों वाले सभी जीवों का अभक्ष्य हैं। भेड़, घोड़ी, गदही, ऊंटनी, दिन के भीतर की ब्याई हुई गाय मानवी स्त्री और हिरनीयों का दूध ब्राह्मण न पीये। यदि किसी के यहाँ मरणाशौच या जननाशौच हो गया हो तो उसके यहाँ दस दिनों तक कोई अन्न नहीं ग्रहण करना चाहिए, इसी प्रकार ब्यायी हुई गाय का दूध भी यदि दस दिन के भीतर का हो तो उसे नहीं पीना चाहिए। राजा का अन्न तेज हर लेता है शूद्र का अन्न ब्रह्मतेज को नष्ट कर देता है सुनार के तथा पति और पुत्र से हीन युवती का अन्न आयु का नाश करता है। व्याजखोर का अन्न विस्टा के समान है और वेश्या के अन्न वीर्य समान। जो अपनी स्त्री के पास उसकी उपपति का आना सेह लेते हैं, उन कायरों का तथा सदा स्त्री के वशीभूत रहने वाले पुरुषों का अन्न वीर्य के तुल्य है। जिसने यज्ञ की दीक्षा ली हो उनका अन्न अग्निषोमिय होमविशेष के पहले अग्राह्य है। कंजूस, यज्ञ बेचने वाले, बढ़ई, चमार या मोची व्यभिचारिणी स्त्री धोबी वेद्य तथा चौकीदार के अन्न भी खाने योग्य नहीं है।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्लेष्मातक के वैद्यक में अनेक नाम आये हैं, उनमें से एक नाम 'द्विजकुत्सित' भी है। इससे सिद्ध होता है कि वह द्विजाति मात्र के लिये अभक्ष्य है।
- ↑ मद्गु एक प्रकार के जलचर पक्षी का नाम है।
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