महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 321 श्लोक 87-94

एकविंशत्‍यधिकत्रिशततम (321) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: एकविंशत्‍यधिकत्रिशततम अध्‍याय: श्लोक 67-94 का हिन्दी अनुवाद


न उनका तुम कुछ कर सकते हो और न वे तुम्‍हारे किसी काम आ सकते हैं। वे अपने कर्मों के साथ चल गये और तुम भी चले जाओगे। इस संसार में जो धनवान् हैं, उन्‍हीं के स्‍वजन उनके साथ स्‍वजनोचित बर्ताव करते हैं; दरिद्रों के स्‍वजन तो उनके जीते-जी ही उन्‍हें छोड़कर उनकी आँख से ओझल हो जाते हैं। मनुष्‍य अपनी स्‍त्री के लिये अशुभ कर्म का संजय करता है, फिर उसके फलस्‍वरूप मे इन्‍द्रलोक और परलोक में भी कष्‍ट उठाता है। मनुष्‍य अपने-अपने कर्मों के अनुसार ही इस जीव-जगत् को छिन्‍न-भिन्‍न हुआ देखता है, अत: बेटा! मैंने जो कुछ कहा है, वह सब काम में लाओ। इन्‍द्रलोक कर्म भूमि है—ऐसा समझकर इसकी ओर देखते हुए‍ दिव्‍य लोकों की इच्‍छा रखने वाले पुरुष को शुभ कार्मों का ही आचरण करना चाहिये। यह कालरूपी रसोइया बलपूर्वक सब जीवों को पका रहा है। मास और ऋतु नामक करछुल से वह जीवों को उलटता-पलटता रहता है। सूर्य उसके लिये आग का काम देते हैं और कर्मफल के साक्षी रात और दिन उसके लिये ईधन बने हुए हैं। उस धन से क्‍या लाभ, जिसे मनुष्‍य न तो किसी को दे सकता और न अपने उपभोग में ही ला सकता है ? उस बल से क्‍या लाभ, जिससे शत्रुओं को बाधित न किया जा सके ? उस शास्‍त्र ज्ञान से क्‍या लाभ, जिसके द्वारा मनुष्‍य धर्माचरण न कर सके ? और उस जीवात्‍मा से क्‍या लाभ जो न तो जितेन्द्रिय है और न मन को ही वश में रख सकता है ? भीष्‍मजी कहते हैं—राजन्! व्‍यासजी के कहे हुए ये हितकर वचन सुनकर शुकदेवजी अपने पिता को छोड़कर मोक्षतत्‍व के उपदेशक गुरु के पास चले गये।

इस प्रकार श्री महाभारत शान्ति पर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्म पर्व में पावकध्ययन नामक तीन सौ इक्कीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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