अष्टादशाधिकत्रिशततम (318) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टादशाधिकत्रिशततम अध्याय: श्लोक 19-35 का हिन्दी अनुवाद
सत्य और सर्वोत्तम ज्ञातव्य वस्तु क्या है ? मुझसे पूछने लगा। पृथ्वीनाथ! तत्पश्चात् उन्होंने वेद के सम्बन्ध में चौबीस प्रश्न पूछे। फिर आन्वीक्षिकी विद्या के सम्बन्ध में पचीसवाँ प्रश्न उपस्थित किया। वे चौबीस प्रश्न इस प्रकार हैं— 1. विश्वा क्या है ? 2. अविश्व क्या है ? 3. अश्वा क्या है ? 4. अश्व क्या है ? 5. मित्र क्या है ? 6. वरुण क्या है ? 7. ज्ञान क्या है ? 8. ज्ञेय क्या है ? 9. ज्ञाता क्या है ? 10. अज्ञ क्या है ? 11. क कौन है ? 12. कौन तपस्वी है ? 13. और कौन अतपस्वी है ? 14. कौन सूर्य है ? 15. तथा कौन अतिसूर्य ? 16. और विद्या क्या है ? 17. तथा अविद्या क्या है ? 18. राजन्! वेद्य क्या है ? 19. अवेद्य क्या है ? 20. चल क्या है ? 21. अचल क्या है ? 22. अपूर्व क्या है ? 23. अक्षय क्या है ? 24. और विनाशशील क्या है ? ये ही उनके पास परम उत्तम प्रश्न हैं। महाराज! इन प्रश्नों को सुनकर मैंने गन्धर्वशिरोमणि राजा विश्वावसु से कहा—‘ राजन्! आपने क्रमश: बड़े उत्तम प्रश्न उपस्थित किये हैं। आप अर्थ के ज्ञाता हैं। थोड़ी देर ठहर जाइये, तब तक मैं आपके इन प्रश्नों पर विचार कर लेता हूँ । ‘तब 'बहुत अच्छा’ कहकर गन्धर्वराज चुपचाप बैठे रहे। तदनन्दर मैंने पुन: सरस्वती देवी का मन-ही–मन चिन्तन किया। फिर तो जैसे दही से घी निकल आता है, उसी प्रकार उन प्रश्नों का उत्तर निकल आया। राजन्! तात! उस समय मैं वहाँ उपनिषद्, उसके परिशिष्ट भाग और परम उत्तम आन्वीक्षिकी विद्या पर दृष्टिपात करके मन के द्वारा उन सबका मन्थन करने लगा। नृपश्रेष्ठ! यह आन्वीक्षिकी विद्या (त्रयी, वार्ता और दण्डनीति—इन तीन विद्याओं की अपेक्षा से) चौथी बतायी गयी है। यह मोक्ष में सहायक है। पचीसवें तत्वरूप पुरुष अधिष्ठित उस विद्या का मैंने तुम से प्रतिपादन किया था (वही विश्वावसु के निकट भी कही गयी)। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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