महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 29 श्लोक 52-69

एकोनत्रिंश (29) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: एकोनत्रिंश अध्याय: श्लोक 52-69 का हिन्दी अनुवाद


'उनके राज्य में कोई भी स्त्री अनाथ-विधवा नहीं हुई। श्री रामचन्द्र जी ने जब तक राज्य का शासन किया, तब तक वे अपनी प्रजा के लिये सदा ही पिता के समान कृपालु बने रहे। मेघ समय पर वर्षा करके खेती को अच्छे ढंग से सम्पन्न करता था- उसे बढ़ने और फूलने-फलने का अवसर देता था। राम के राज्य-शासन काल में सदा सुकाल ही रहता था (कभी अकाल नहीं पड़ता था)। राम के राज्य का शासन करते समय कभी कोई प्राणी जल में नहीं डूबते थे, आग अनुचित रूप से कभी किसी को नहीं जलाती थी तथा किसी को रोग का भय नहीं होता था। श्री रामचन्द्र जी जब राज्य का शासन करते थे, उन दिनों हजार वर्ष तक जीने वाली स्त्रियाँ और सहस्रों वर्ष तक जीवित रहने वाले पुरुष थे। किसी को कोई रोग नहीं सताता था, सभी के सारे मनोरथ सिद्ध होते थे। स्त्रियों में भी परस्पर विवाद नहीं होता था; फिर पुरुषों की तो बात ही क्या है? श्रीराम के राज्य-शासन काल में समस्त प्रजा सदा धर्म में तत्पर रहती थी। श्रीरामचन्द्र जी जब राज्य करते थे, उस समय सभी मनुष्य संतुष्ट, पूर्ण काम, निर्भय, स्वाधीन और सत्यव्रती थे।

श्रीराम के राज्यशासन काल में सभी वृक्ष बिना किसी विघ्न-बाधा के सदा फले-फूले रहते थे और समस्त गौएँ एक-एक दोन दूध देती थीं। महातपस्वी श्रीराम ने चौदह वर्षों तक वन में निवास करके राज्य पाने के अनन्तर दस ऐसे अश्वमेध यज्ञ किये, जो सर्वथा स्तुति के योग्य थे तथा जहाँ किसी भी याचक के लिये दरवाजा बंद नहीं होता था। श्रीरामचन्द्र जी नवयुवक और श्याम वर्ण वाले थे। उनकी आँखों में कुछ-कुछ लालिमा शोभा देती थी। वे यूथपति गजराज के समान शक्तिशाली थे। उनकी बड़ी-बड़ी भुजाएँ घुटनों तक लंबी थी। उनका मुख सुन्दर और कंधे सिंह के समान थे। श्रीराम ने अयोध्या के अधिपति होकर ग्यारह हजार वर्षों तक राज्य किया था। सृंजय! वे चारों कल्याणकारी गुणों में तुमसे बढे़-चढ़े थे और तुम्हारे पुत्र से भी अधिक पुण्यात्मा थे। जब वे भी यहाँ रह न सके, तब दूसरों की क्या बात है? अतः तुम्हें अपने पुत्र के लिये शोक नहीं करना चाहिये।

सृंजय! राजा भगीरथ भी काल के गाल में चले गये, ऐसा हमने सुना है। जिनके विस्तृत यज्ञ में सोम पीकर मदोन्मत्त हुए सुरश्रेष्ठ भगवान पाकशासन इन्द्र ने अपने बाहुबल से कई सहस्र असुरों को पराजित किया। जिन्होंने यज्ञ करते समय अपने विशाल यज्ञ में सोने के आभूषणों से विभूषित दस लाख कन्याओं का दक्षिणा रूप में दान किया था। वे सभी कन्याएँ अलग-अलग रथ में बैठी हुई थीं। प्रत्येक रथ में चार-चार घोडे़ जुते हुए थे। हर एक रथ के पीछे सोने की मालाओं से विभूषित तथा मस्तक पर कमल के चिह्नों से अलंकृत सौ-सौ हाथी थे। प्रत्येक हाथी के पीछे एक-एक हजार घोडे़, हर एक घोडे़ के पीछे हजार-हजार गायें और एक-एक गाय के साथ हजार-हजार भेड़-बकरियाँ चल रही थीं। तट के निकट निवास करते समय गंगा जी राजा भागीरथ की गोद में आ बैठी थीं। इसलिये वे पूर्वकाल में भागीरथी और उर्वशी नाम से प्रसिद्ध हुई। त्रिपथगामिनी गंगा ने पुत्री भाव को प्राप्त होकर पर्याप्त दक्षिणा देने वाले इक्ष्वाकुवंशी यजमान भगीरथ को अपना पिता माना।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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