चतुरशीत्यधिकद्विशततम (284) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: चतुरशीत्यधिकद्विशततम अध्याय श्लोक 78-87 का हिन्दी अनुवाद
वृषभ के कंधों के समान आपके कंधे भरे हुए हैं। आप पिनाक धनुष धारण करते हैं। शत्रुओं का दमन करने वाले और दण्डस्वरूप हैं। किरात या तपस्वी के रूप में विचरते समय आप भोजपत्र और वल्कलवस्त्र धारण करते हैं। आपको नमस्कार है। हिरण्य (सुवर्ण) को उत्पन्न करने के कारण हिरण्यगर्भ कहलाते हैं। सुवर्ण के ही कवच और मुकुट धारण करने से आपको हिरण्यकवच और हिरण्यचूड़ कहा गया है। आप सुवर्ण के अधिपति हैं। आपको सादर नमस्कार है। जिनकी स्तुति हो चुकी है, वे आप हैं। जो स्तुति के योग्य हैं, वे भी आप हैं और जिनकी स्तुति हो रही है, वे भी आप ही हैं। आप सर्वस्वरूप, सर्वभक्षी और सम्पूर्ण भूतों के अन्तरात्मा हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। आप ही होता और मन्त्र हैं। आपको नमस्कार है। आपकी ध्वजा और पताका का रंग श्वेत है। आपको नमस्कार है। आप नाभ (नाभि में सम्पूर्ण जगत को धारण करने वाले), नाभ्य (संसार-चक्र के नाभि-स्थान) तथा कट-कट (आवरण के भी आवरण) हैं। आपको नमस्कार है। आपकी नासिका कृश (पतली) है, इसलिये आप कृशनस कहलाते हैं। आपके अवयव कृश होने से आपको कृशांग तथा शरीर दुबला होने से कृश कहते हैं। आप अत्यन्त हर्षोल्लास से परिपूर्ण, विशेष हर्ष का अनुभव करने वाले और हर्ष की किल-किल ध्वनि हैं। आपको नमस्कार है। आप समस्त प्राणियों के भीतर शयन करने वाले अन्तर्यामी पुरुष हैं। प्रलयकाल में योगनिद्रा का आश्रय लेकर सोते और सृष्टि के प्रारम्भ काल में कल्पान्त निद्रा से जागते हैं। आप ब्रह्मरूप से सर्वत्र स्थित और कालरूप से सदा दौड़ने वाले हैं। मूँड़ मुँड़ाने वाले सन्यासी और जटाधारी तपस्वी भी आपके ही स्वरूप हैं। आपको नमस्कार है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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