चतुरशीत्यधिकद्विशततम (284) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: चतुरशीत्यधिकद्विशततम अध्याय श्लोक 187-203 का हिन्दी अनुवाद
जो मनुष्य दक्ष के द्वारा कहे हुए इस स्तोत्र का कीर्तन अथवा श्रवण करेगा, उसे कोई अमंगल नहीं प्राप्त होगा। वह दीर्घ आयु प्राप्त करता है। जैसे भगवान शिव सब देवताओं में श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार वह वेदतुल्य स्तोत्र सभी स्तुतियों में श्रेष्ठ है। यश, राज्य, सुख, ऐश्वर्य, काम, अर्थ, धन और विद्या की इच्छा रखने वाले पुरुषों को भक्ति भाव का आश्रय लेकर यत्नपूर्वक इस स्तोत्र का श्रवण करना चाहिए। रोगी, दुखी, दीन, चोर के हाथ में पड़ा हुआ, भयभीत तथा राजकार्य का अपराधी मनुष्य भी इस स्त्रोत का पाठ करने से महान भय से छुटकारा पा जाता है। इतना ही नहीं, वह इसी शरीर से भगवान शिव के गणों की समानता प्राप्त कर लेता है तथा तेज और यश से सम्पन्न होकर निर्मल हो जाता है। जिसके यहाँ इस स्तोत्र का पाठ होता है, उसके घर में राक्षस, पिशाच, भूत और विनायक कभी कोई विघ्न नहीं करते हैं। जो नारी भगवान शंकर में भक्ति भाव रखकर ब्रह्मचर्य का पालन करती हुई इस स्तोत्र को सुनती है, वह पितृकुल और पतिकुल में देवता के समान आदरणीय होती है। जो एकाग्रचित्त होकर इस सम्पूर्ण स्तोत्र को सुनता है अथवा पढ़ता है, उसके सारे कार्य सदा ही सिद्ध होते रहते हैं। वह मन से जिस वस्तु के लिये चिन्तन करता है अथवा वाणी से जिस मनोरथ की याचना करता है, उसका वह सारा अभीष्ट इस स्तोत्र के बार-बार पाठ से सिद्ध हो जाता है। मनुष्य को चाहिये कि वह इन्द्रियों को संयम में रखकर शौच-संतोष आदि नियमों का पालन करते हुए महादेव जी, कार्तिकेय, पार्वती देवी और नन्दिकेश्वर को विधिपूर्वक पूजोपहार समर्पित करे, फिर एकाग्रचित्त होकर क्रमश: इन सहस्र नामों का पाठ करे। ऐसा करने से मनुष्य शीघ्र ही मनोवांछित पदार्थों, भोगों और कामनाओं को प्राप्त कर लेता है तथा मृत्यु के पश्चात स्वर्ग में जाता है। उसे पशु-पक्षी आदि की योनि में जन्म नहीं लेना पड़ता है। इस प्रकार सर्वसमर्थ पराशरनन्दन भगवान व्यास जी ने इस स्तोत्र का माहात्म्य बतलाया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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