महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 282 श्लोक 36-52

द्वयशीत्‍यधिकद्विशततम (282) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: द्वयशीत्‍यधिकद्विशततम अध्याय श्लोक 36-52 का हिन्दी अनुवाद

महाराज! इसके बाद पितामह वृक्ष, तृण और औषधियों को बुलाकर उनसे भी वही बात कहने लगे। ब्रह्माजी बोले- बृत्रासुर के वध से यह महाभयंकर ब्रह्महत्‍या प्रकट होकर इन्‍द्र के पीछे लगी है। तुम लोग उसका एक चौथाई भाग स्‍वयं ग्रहण कर लो। राजन्! ब्रह्माजी ने जब उसी प्रकार सब बातें ठीक-ठीक सामने रख दीं, तब अग्नि के ही समान वृक्ष, तृण और औषधियों का समुदाय भी व्‍यथित हो उठा और उन सबने ब्रह्माजी से इस प्रकार कहा - 'लोकपितामह! हमारी इस ब्रह्महत्‍या का अन्‍त क्‍या होगा? हम तो यों ही दैव के मारे हुए स्‍थावर योनि में पड़े हैं; अत: अब आप पुन: हमें न मारें। 'देव! त्रिलोकीनाथ! हम लोग सदा अग्नि और धूप का ताप, सर्दी, वर्षा, आँधी और अस्‍त्र-शस्‍त्रों द्वारा भेदन-छेदन का कष्‍ट सहते रहते हैं। आज आपकी आज्ञा से इस ब्रह्महत्‍या को भी ग्रहण कर लेंगे; किंतु आप इनसे हमारे छुटकारे का उपाय भी तो सोचिये'। ब्रह्माजी ने कहा- संक्रान्ति, ग्रहण, पूर्णिमा, अमावस्या आदि पर्वकाल प्राप्त होने पर जो मनुष्य मोहवश तुम्हारा भेदन-छेदन करेगा, उसी के पीछे तुम्हारी यह ब्रह्महत्या लग जायगी। भीष्म जी कहते हैं- राजन्! महात्मा ब्रह्माजी के ऐसा कहने पर वृक्ष, औषधि और तृणका समुदाय उनकी पूजा करके जैसे आया था, वैसे ही शीघ्र लौट गया। भारत!

तत्‍पश्‍चात् लोकपितामह ब्रह्माजी ने अप्सराओं को बुलाकर उन्हें मीठे वचनों द्वारा सान्त्वना देते हुए-से कहा - ‘सुन्दरियों! यह ब्रह्महत्या इन्द्र के पास से आयी है। तुम लोग मेरे कहने से इसका एक चतुर्थांश ग्रहण कर लो’। अप्सराएँ बोलीं- देवेश पितामह! आपकी आज्ञा से हमने इस ब्रह्महत्या को ग्रहण कर लेने का विचार किया है, किंतु इससे हमारे छुटकारे के समय का भी विचार करने की कृपा करें । ब्रह्माजी ने कहा - जो पुरुष रजस्वला स्त्रियों के साथ मैथुन करेगा, उस पर यह ब्रह्महत्या शीघ्र चली जायगी; अतः तुम्हारी यह मानसिक चिन्ता दूर हो जानी चाहिए। भीष्म जी कहते हैं- भरतश्रेष्ठ! यह सुनकर अप्सराओं का मन प्रसन्न हो गया। वे ‘बहुत अच्छा‘ कहकर अपने-अपने स्थानों में जाकर विहार करने लगीं। तब त्रिभुवन की सृष्टि करने वाले महातपस्वी भगवान ब्रह्मा ने पुनः जल का चिन्तन किया। उनके स्मरण करते ही तुरंत जल देवता वहाँ उपस्थित हो गये। राजन्! वे सब अमित तेजस्वी पितामह ब्रह्माजी के पास पहुँच कर उन्हें प्रणाम करके इस प्रकार बोले- ‘शत्रुओं का दमन करने वाले प्रभो! देव! लोकनाथ! हम आपकी आज्ञा से सेवा में उपस्थित हुए हैं। हमें आज्ञा दीजिए, हम कौन-सी सेवा करें’ ? ब्रह्माजी ने कहा- वृत्रासुर के वध से इन्द्र को यह महाभयंकर ब्रह्महत्या प्राप्त हुई है। तुम लोग इसका एक चौथाई भाग ग्रहण कर लो। जल देवता ने कहा – लोकेश्वर! प्रभो! आप जैसा कहते हैं, ऐसा ही होगा; परंतु हम इस ब्रह्महत्या से किस समय छुटकारा पायेंगे, इसका भी विचार कर लें ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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