महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 251 श्लोक 16-24

एकपंचाशदधिकद्विशततम (251) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

Prev.png

महाभारत: शान्ति पर्व: एकपंचाशदधिकद्विशततम श्लोक 16-24 का हिन्दी अनुवाद


जो उत्‍पत्ति और विनाश से रहित, स्‍वभावसिद्ध, संस्‍कार शून्‍य तथा शरीर के भीतर स्थित सुकृत नाम से प्रसिद्ध ब्रह्मा को प्राप्‍त हो जाता है, वह अक्षय सुख का भागी होता है। अपने मन को इधर-उधर जाने से रोककर आत्‍मा में सम्‍पूर्णरूप से स्‍थापित कर लेने पर पुरुष को जिस संतोष और सुख की प्राप्ति होती है, उसका दूसरे किसी उपाय से प्राप्‍त होना असम्‍भव है। जिससे बिना भोजन के भी मनुष्‍य तृप्‍त हो जाता है, जिसके होने से निर्धन को भी पूर्ण संतोष रहता है तथा जिसका आश्रय मिलने से घृत आदि स्निग्‍ध पदार्थ का सेवन किये बिना भी मनुष्‍य अपने में अनन्‍त बल का अनुभव करताहै, उस ब्रह्मा को जानता है, वही वेदों का तत्‍वज्ञ है। जो अपनी इन्द्रियों के सुरक्षित द्वारों को सब ओर से बंद करके नित्‍य ब्रह्मा का चिन्‍तन करता रहता है, वही श्रेष्‍ठ ब्राह्मण आत्‍माराम कहलाता है। जो अपनी कामनाओं को नष्‍ट करके परम तत्‍वरूप परमात्‍मा में एकाग्रचित्त होकर स्थित है, उसका सुख शुक्‍लपक्ष के चन्‍द्रमा की भाँति सब ओर से बढ़ता रहता है।

जो सामान्‍यत: सम्‍पूर्ण भूतों और भौतिक गुणों का त्‍याग कर देता है, उस मुनि का दु:ख उसी प्रकार सुखपूर्वक अनायास नष्‍ट हो जाता हैं, जैसे सूर्योदय से अन्‍धकार। गुणों के ऐश्‍वर्य तथा कर्मों का परित्‍याग करके विषयवासना से रहित हुए उस ब्रह्मावेत्ता पुरुष को जरा और मृत्‍यु नहीं प्राप्‍त होती हैं। जब मनुष्‍य समस्‍त बन्‍धनों से पूर्णतया मुक्‍त होकर समता में स्थित हो जाता है, उस समय इस शरीर के भीतर रहकर भी वह इन्द्रियों और उनके विषयों की पहुँच के बाहर हो जाता है। इस प्रकार जो परम कारण स्‍वरूप ब्रह्मा को पाकर कार्यमयी प्रकृति की सीमा को लाँघ जाता है, वह ज्ञानी परमपद को प्राप्‍त हो जाता है। उसे पुन: इस संसार में नहीं लौटना पड़ता है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्‍तर्गत मोक्षधर्मपर्व में शुकदेव का अनुप्रश्‍नविषयक दौ सो इक्‍यावनवॉ अध्‍याय पूरा हुआ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः