चत्वारिंशदधिकद्विशततमम (240) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: चत्वारिंशदधिकद्विशततमम श्लोक 31-36 का हिन्दी अनुवाद
जिसने अपने मन को वश में कर लिया है वही योगी निश्चल मन, बुद्धि और इन्द्रियों द्वारा जिसकी उपलब्धि होती है, उस अजन्मा, पुरातन, अजर, सनातन, नित्यमुक्त, अणु से भी महान परमात्मा का आत्मा से अनुभव करता है। महर्षि महात्मा व्यास के यथावद् रूप से कहे गये इस उपदेश वाक्य पर मन ही मन विचार करके एवं इसको भली-भाँति समझकर जो इसके अनुसार आचरण करते हैं, वे मनीषी पुरुष ब्रह्माजी की समानता को प्राप्त होते हैं और प्रलयकाल पर्यन्त ब्रह्मालोक में ब्रह्माजी के साथ रहकर अन्त में उन्हीं के साथ मुक्त हो जाते हैं। इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में शुक्रदेव का अनुप्रश्न विषयक दो सौ चालीसवॉ अध्याोय पूरा हुआ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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