चतुरधिकद्विशततम (204) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: चतुरधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 16-20 का हिन्दी अनुवाद
इन्द्रिय द्वारा विषयों को ग्रहण न करने से पुरुष के वे विषय तो निवृत्त हो जाते हैं; परंतु उनमें उनकी आसक्ति बनी रहती है। परमात्मा का साक्षात्कार कर लेने पर पुरुष की वह आसक्ति भी दूर हो जाती है। जिस समय बुद्धि कर्मजनित गुणों से छूटकर हृदय में स्थित हो जाती है, उस समय जीवात्मा ब्रह्मा में लीन होकर ब्रह्मा को प्राप्त हो जाता है। परब्रह्म परमात्मा स्पर्श, श्रवण, रसन, दर्शन, घ्राण और संकल्प-विकल्प से भी रहित है; इसलिये केवल विशुद्ध बुद्धि ही उसमें प्रवेश कर पाती है। मन में शब्दादि विषयरूप समस्त आकृतियों का लय होता है। मन का बुद्धि में, बुद्धि का ज्ञान में और ज्ञान का परमात्मा में लय होता है। इन्द्रियों द्वारा मन की सिद्धि नहीं होती अर्थात इन्द्रियाँ मन को नहीं जानती हैं। मन बुद्धि को नहीं जानता और बुद्धि सूक्ष्म एवं अव्यक्त आत्मा को नहीं जानती है; किंतु अव्यक्त आत्मा इन सबको देखता और जानता है। इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्म पर्व में मनु बृहस्पति का संवाद विषयक दो सौ चारवॉ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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