महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 200 श्लोक 19-34

द्विशततम (200) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: द्विशततम अध्याय: श्लोक 19-34 का हिन्दी अनुवाद

इस प्रकार मन को जीतकर दृष्टि को एकाग्र करके उन दोनों ने प्राणसहित मन को सुषुम्‍णा मार्ग द्वारा मूर्धा में स्‍थापित कर दिया। फिर वे दोनों समाधि में स्थित हो गये। उस समय उन दोनों के शरीर जड़ की भाँति चेष्टाहीन हो गये। इसी समय महात्‍मा ब्राह्मण के तालुदेश (ब्रह्मरन्‍ध्र) का भेदन करके एक ज्‍योतिमर्यी विशाल ज्‍वाला निकली और स्‍वर्ग की ओर चल दी। फिर तो सम्‍पूर्ण दिशाओं में महान कोलाहल मच गया। उस ज्‍योति की सभी लोग स्‍तुति करने लगे। प्रजानाथ! प्रादेश के बराबर लंबे पुरुष का आकार धारण किये वह तेज:पुंज ब्रह्मा जी के पास पहुँचा, तब ब्रह्मा जी ने आगे बढ़कर उसका स्‍वागत किया।

ब्रह्मा जी ने उस तेजोमय पुरुष का स्‍वागत करने के पश्‍चात पुन: उससे मधुर वाणी में इस प्रकार कहा- ‘विप्रवर! योगियों को जो फल मिलता है, निस्‍संदेह वही फल जप करने वालों को भी प्राप्‍त होता है। ‘योगियों को जिस फल की प्राप्ति होती है, वह इन सभासदों ने प्रत्‍यक्ष देखा है; किंतु जापकों को उनसे भी श्रेष्ठ फल प्राप्‍त होता है, यह सूचित करने के लिये ही मैंने उठकर तुम्‍हारा स्‍वागत किया हैं। ‘अब तुम मेरे भीतर सुखपूर्वक निवास करो।’ इतना कहकर ब्रह्मा जी ने उसे पुन: तत्‍वज्ञान प्रदान किया।

आज्ञा पाकर वह ब्राह्मण तेज रोग-शोक से मुक्‍त हो ब्रह्मा जी के मुखारविन्‍द में प्रविष्ट हो गया। राजा इक्ष्‍वाकु भी उस श्रेष्ठ ब्राह्मण की ही भाँति विधि‍पूर्वक भगवान ब्रह्मा जी के मुखारविन्‍द में प्रविष्ट हो गये। तदनन्‍तर देवताओं ने ब्रह्मा जी को प्रणाम करके कहा-‘भगवन! आपने जो आगे बढ़कर इस ब्राह्मण का स्‍वागत किया है, इससे सिद्ध हो गया कि जापकों को योगियों से भी श्रेष्ठ फल की प्राप्ति होती है। ‘इस जापक ब्राह्मण को सद्गगति देने के लिये ही आपने ऐसा उद्योग किया था। इसी को देखने के लिये हम लोग भी आये थे। आपने इन दोनों का समानरूप से आदर किया और ये दोनों ही एक-सी स्थिति में पहुँचकर आपके समान फल के भागी हुए है। ‘आज हम लोगों ने योगी और जापक के महान फल को प्रत्‍यक्ष देख लिया। वे सम्‍पूर्ण लोकों को लाँघकर जहाँ उनकी इच्‍छा हो, जा सकते है’। ब्रह्मा जी ने कहा- देवताओं! जो महास्‍मृति तथा कल्‍याणमयी अनुस्‍मृति का पाठ करता है, वह भी इसी विधि से मेरा सालोक्‍य प्राप्‍त कर लेता है। जो योग का भक्‍त है, वह भी देहत्‍याग के पश्‍चात इसी विधि से मेरे लोकों को प्राप्‍त कर लेता है, इसमें संशय नही है। अब तुम सब लोग अपनी अभीष्ट-सिद्धि के लिये अपने-अपने स्‍थान को जाओ। मैं तुम लोगों का अभीष्ट साधन करता रहूँगा।

भीष्‍म जी कहते हैं- राजन! ऐसा कहकर ब्रह्मा जी वहीं अन्‍तर्धान हो गये। देवता भी उनकी आज्ञा पाकर अपने-अपने स्‍थान को चले गये। राजन! फिर वे सभी महात्‍मा धर्म को सत्‍कारपूर्वक आगे करके प्रसन्‍नचित हो पीछे-पीछे चल दिये। महाराज! मैंने जैसे सुना था, उसके अनुसार जापको को मिलने वाले इस उत्‍तम फल और गति का वर्णन किया। अब तुम और क्‍या सुनना चाहते हो?

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्‍तर्गत मोक्षधर्म पर्व में जापक का उपाख्‍यानविषयक दो सौवॉ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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