प्रथम (1) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: प्रथम अध्याय: श्लोक 34-44 का हिन्दी अनुवाद
कर्ण और अर्जुन की सहायता पाकर तो मैं देवराज इन्द्र को भी जीत सकता था। कौरव-सभा में जब दुरात्मा धृतराष्ट्र-पुत्रों ने मुझे बहुत क्लेश पहुँचाया, तब सहसा मेरे हृदय में क्रोध प्रकट हो गया; परंतु कर्ण को देखकर वह शान्त हो गया। जब धृतराष्ट सभा में दुर्योधन के हित की इच्छा से वे बोलने लगते और मैं उनकी कड़बी एवं रूखी बातें सुनता, उस समय उनके पैरों को देखकर मेरा बढ़ा हुआ रोष शान्त हो जाता था। मेरा विश्वास है कि कर्ण के दोनों पैर माता कुन्ती के चरणों के सदृश थे। कुन्ती और कर्ण के पैरों में इतनी समानता क्यों है? इसका कारण ढूँढता हुआ मैं बहुत सोचता-विचारता, परंतु किसी तरह कोई कारण नहीं समझ पाता था। नारद जी! संग्राम में कर्ण के पहिये को पृथ्वी क्यों निगल गयी और मेरे बड़े भाई कर्ण को कैसे यह शाप प्राप्त हुआ? इसे आप ठीक-ठीक बताने की कृपा करें। भगवन! मैं आपसे यह सारा वृत्तान्त यथार्थ रूप से सुनना चाहता हूँ; क्योंकि आप सर्वश विद्वान हैं और लोक में जो भूत और भविष्य काल की घटनाएं हैं, उन सबको जानते हैं। इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासन पर्व में कर्ण की पहचान-विषयक पहला अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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