प्रथम (1) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: प्रथम अध्याय: श्लोक 19-33 का हिन्दी अनुवाद
मैंने अनजाने में राज्य के लोभ में आकर भाई के हाथ से ही भाई का वध करा दिया। इस बात की चिन्ता मेरे अंगों को उसी प्रकार जला रही है, जैसे आग रूई के ढेर को भस्म कर देती है। कुन्तीनन्दन श्वेतवाहन अर्जुन भी उन्हें भाई के रूप में नहीं जानते थे। मुझको, भीमसेन तथा नकुल- सहदेव को भी इस बात का पता नहीं था; किंतु उत्तम व्रत का पालन करने वाले कर्ण हमें अपने भाई के रूप में जानते थे। सुनने में आया है कि मेरी माता कुन्ती हम लोगों में संधि कराने की इच्छा से उनके पास गयीं थीं और उन्हें बताया था कि ’तुम मेरे पुत्र हो',परंतु महामनस्वी कर्ण ने माता कुन्ती की यह इच्छा पूरी नहीं की। हमने यह भी सुना है कि उन्होंने पीछे माता कुन्ती को यह जबाव दिया कि 'मैं युद्ध के समय राजा दुर्योधन का साथ नहीं छोड़ सकता; क्योंकि ऐसा करने से मेरी नीचता, क्रूरता और कृतघ्नता सिद्ध होगी।' माता जी! यदि तुम्हारे मत के अनुसार मैं इस समय युधिष्ठिर के साथ संधि कर लूं तो सब लोग यही समझेंगे कि 'कर्ण युद्ध में अर्जुन से डर गया।' अतः मैं पहले समरांगण में श्रीकृष्ण सहित अर्जुन को परास्त करके पीछे धर्मपुत्र युधिष्ठिर के साथ संधि करूंगा, ऐसी बात उन्होंने कही। तब कुन्ती ने चौड़ी छाती वाले कर्ण से फिर कहा- 'बेटा! तुम इच्छानुसार अर्जुन से युद्ध करो; किंतु अन्य चार भाइयों को अभय दे दो’। इतना कहकर माता कुन्ती थर्थर कांपने लगीं। तब बुद्धिमान कर्ण ने हाथ जोड़कर माता से कहा- 'देवि! तुम्हारे चार पुत्र मेरे वश में आ जायेंगे तो भी मैं उनका वध नहीं करूंगा। तुम्हारे पाँच पुत्र निश्चित रूप से बने रहेंगे। यदि कर्ण मारा गया तो अर्जुन सहित तुम्हारे पाँच पुत्र होंगे और यदि अर्जुन मारे गये तो वे कर्ण सहित पाँच होंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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