महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 170 श्लोक 19-26

सप्‍तत्‍यधिकशततम (170) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: सप्‍तत्‍यधिकशततम अध्याय: श्लोक 19-26 का हिन्दी अनुवाद

चलते–चलते वह मेरूव्रज नामक नगर में जा पहुँचा, जिसके चारों ओर पर्वतों के टीले और पर्वतों की ही चहारदीवारी थी। उसका सदर फाटक भी एक पर्वत ही था। नगर की रक्षा के लिये सब ओर शिला की बड़ी–बड़ी चट्टानें और मशीनें थीं। परम बुद्धिमान् राक्षसराज विरूपाक्ष को सेवकों द्वारा यह सूचना दी गयी कि राजन्! आपके मित्र ने अपने एक प्रिय अतिथि को आपके पास भेजा है, वह बहुत प्रसन्‍न है। युधिष्ठिर! यह समाचार पाते ही राक्षसराज ने अपने सेवकों से कहा- ‘गौतम को नगर द्वार से शीघ्र यहाँ लाया जाय’। यह आदेश प्राप्‍त होते ही राजसेवक गौतम को पुकारते हुए बाज की तरह झपटकर उस श्रेष्‍ठ नगर के फाटक पर आये।

महाराज! राजा के उन सेवकों ने उस समय उस ब्राह्मण से कहा- ‘ब्रह्मन्! जल्‍दी कीजिये। शीघ्र आइये। महाराज आप से मिलना चाहते हैं। ‘विरूपाक्ष नाम से प्रसिद्ध वीर राक्षसराज आपको देखने के लिये उतावले हो रहे है; अत: आप शीघ्रता कीजिये’। बुलावा सुनते ही गौतम की थकावट दूर हो गयी। वह विस्मित होकर दौड़ पड़ा। राक्षसराज की उस महा-समृद्धि को देखकर उसे बड़ा आश्‍चर्य होता था। राक्षसराज के दर्शन की इच्‍छा मन में लिये वह ब्राह्मण उन सेवकों के साथ शीघ्र ही राजमहल में जा पहुँचा।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शांतिपर्वके अंतर्गत आपद्धर्मपर्व में कृतघ्‍न का उपाख्‍यानविषयक एक सौ सतरवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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