एकोनसप्तत्यधिकशततम (169) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: एकोनसप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 18-24 का हिन्दी अनुवाद
तदनन्तर, सूर्य के अस्ताचल को चले जाने के पश्चात् संध्यकाल उपस्थित होने पर ब्रह्मलोक से वहाँ एक श्रेष्ठ पक्षी आया। वह वृक्ष ही उसका घर या वासस्थान था। वह महर्षि कश्यप का पुत्र और ब्रह्माजी का प्रिय सखा था। उसका नाम था नाड़ीजंघ (कश्यप पुत्र)। वह बगुलों का राजा और महाबुद्धिमान् था। वह अनुपम पक्षी इस भूतल पर राजधर्मा के नाम से विख्यात था। देवकन्या से उत्पन्न होने के कारण उसके शरीर की कान्ति देवता के समान थी। वह बडा विद्वान् था और दिव्य तेज से सम्पन्न दिखायी देता था। उसके अग्ङों में सूर्यदेव की किरणों के समान चमकीले आभूषण शोभा देते थे। वह देवकुमार अपने सभी अग्ङों में विशुद्ध एवं दिव्य आभरणों से विभूषित हो दिव्य दीप्ति से देदीप्यमान होता था। उस पक्षी को आया देख गौतम आश्चर्य से चकित हो उठा। उस समय वह भूखा–प्यासा तो था ही, रास्ता चलने की थकावट से भी चूर–चूर हो रहा था। अत: राजधर्मा को मार डालने की इच्छा से उसकी ओर देखा। राजधर्मा (पास आकर) बोला- विप्रवर! आपका स्वागत है। यह मेरा घर है। आप यहाँ पधारे, यह मेरे लिये बड़े सौभाग्य की बात है। सूर्यदेव अस्ताचल को चले गये। यह संध्याकाल उपस्थित है। आप मेरे घर आये हुए प्रिय एवं उत्तम अतिथि हैं। मैं शास्त्रीय विधि के अनुसार आज आपकी पूजा करूंगा। रात में आतिथ्य स्वीकार करके कल प्रात:काल यहाँ से जाइयेगा। इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत आपद्धर्मपर्व में कृतघ्र का उपाख्यान विषयक एक सौ उनहतरवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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