षष्टशयधिकशततम (160) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: षष्टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 33-38 का हिन्दी अनुवाद
महाप्राज्ञ युधिष्ठिर! उसका यह एक दोष ही महान गुण हो सकता है। क्षमा धारण करने से उसको बहुत से पुण्यलोक सुलभ होते हैं। साथ ही क्षमा से सहिष्णुता भी आ जाती है। भारत! संयमी पुरुष को वन में जाने की क्या आवश्यकता है? और जो असंयमी है, उसको वन में रहने से भी क्या लाभ है? संयमी पुरुष जहाँ रहे, वहीं उसके लिये वन और आश्रम है। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! भीष्मजी की यह बात सुनकर राजा युधिष्ठिर बड़े प्रसन्न हुए, मानो अमृत पीकर तृप्त हो गये हों। कुरुक्षेष्ठ! तत्पश्चात् उन्होंने धर्मात्माओं में श्रेष्ठ भीष्मजी से पुन: तपस्या विषय में प्रश्न किया। तब भीष्म जी ने उन्हें उसके विषय में सब कुछ बताना आरम्भ किया। इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत आपद्धर्मपर्व में दम का वर्णनविषयक एक सौ साठवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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