त्रिपञ्चाशदधिकशततम (153) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: त्रिपञ्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 68-85 का हिन्दी अनुवाद
इसी प्रकार राजर्षि श्वेत का भी बालक मर गया था, परंतु धर्मनिष्ठ श्वेत ने उसे पुन: जीवित कर दिया था। इसी प्रकार सम्भव है कोई सिद्ध मुनि या देवता मिल जायँ और यहाँ रोते हुए तुम दीन-दुखियों पर दया कर दें। सियार के ऐसा कहने पर वे पुत्र वत्सल बान्धव शोक से पीड़ित हो लौट पड़े और बालक का मस्तक अपनी गोद में रखकर जोर-जोर से रोने लगे। उनके रोने की आवाज सुनकर गीध पास आ गया और इस प्रकार बोला। गीध ने बोला-तुम लोगो के आँसू बहाने से जिसका शरीर गीला हो गया है और जो तुम्हारे हाथों से बार-बार दबाया गया है, ऐसा यह बालक धर्मराज की आज्ञा से चिरनिद्रा में प्रविष्ट हो गया है। बड़े-बड़े़ तपस्वी, धनवान और महा बुद्धिमान सभी यहाँ मृत्यु के अधीन हो जाते हैं। यह प्रेतों का नगर है। यहाँ लोगों के भाई-बन्धु सदा सहस्रों बालकों और वृद्धों को त्यागकर दिन-रात दुखी रहते हैं। दुराग्रहवश बारंबार लौटकर शोक का बोझ धारण करने से कोई लाभ नहीं है। अब इसके जीने का कोई भरोसा नहीं है। भला, आज यहाँ इसका पुनर्जीवन कैसे हो सकता है? जो व्यक्ति एक बार इस देह से नाता तोड़कर मर जाता है, उसके लिए फिर इस शरीर में लौटना सम्भव नहीं है सैकड़ों सियार अपना शरीर बलदान कर दें तो भी सैकड़ों वर्षों में इस बालक को जिलाया नहीं जा सकता। यदि भगवान शिव, कुमार कार्तिकेय, ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु इसे वर दें तो यह बालक जी सकता है। न तो आँसू बहाने से, न लंबी-लंबी सांस खीचनें से और न दीर्घकाल तक रोने से ही यह फिर जी सकेगा। मैं, यह सियार और तुम सब लोग जो इसके भाई बन्धु हो- ये धर्म और अधर्म को लेकर यहाँ अपनी-अपनी राह पर चल रहे हैं। बुद्धिमान पुरुषों को अप्रिय आचरण, कठोर वचन, दूसरों के साथ द्रोह, परायी स्त्री, अधर्म और असत्य-भाषण का दूर से ही परित्याग कर देना चाहिये। तुम सब लोग धर्म, सत्य, शास्त्रज्ञान, न्याय पूर्ण बर्ताव समस्त प्राणियों पर बड़ी भारी दया, कुटिलता का अभाव तथा शठता का त्याग- इन्हीं सद्गुणों का यत्नपूर्वक अनुसरण करो। जो लोग जीवित माता-पिता, सुहृदों और भाई-बन्धुओं की देखभाल नहीं करता हैं, उनके धर्म की हानि होती है। जो न आँखों से देखता है, न शरीर से कोई चेष्टा ही करता है, उसके जीवन का अन्त हो जाने पर अब तुम लोग रो कर क्या करोगे। गीध के ऐसा कहने पर वे शोक में डूबे हुए भाई-बन्धु अपने उस पुत्र को धरती पर सुलाकर उसके स्नेह से दग्ध होते हुए अपने घर की ओर लौटे। तब सियार ने कहा- यह मर्त्यलोक अत्यन्त दु:खद है। यहाँ समस्त प्राणियों का नाश ही होता है। प्रिय बन्धुजनों के वियोग का कष्ट भी प्राप्त होता रहता है। यहाँ का जीवन बहुत थोड़ा है। इस संसार में सब कुछ असत्य एवं बहुत अरुचिकर है। यहाँ अनाप-शनाप बकने वाले तो बहुत हैं, परंतु प्रिय वचन बोलने वाले विरले ही हैं। यहाँ का भाव दु:ख और शोक की वृद्धि करने वाला है। इसे देखकर मुझे यह मनुष्य लोक दो घड़ी भी अच्छा नहीं लगता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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