षोडशाधिकशततम (116) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: षोडशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 16-23 का हिन्दी अनुवाद
तदनन्तर एक दिन एक महाभयंकर भूखे बाघ ने उसका रक्त पीने की इच्छा से मुंह फैलाकर दोनों जबड़ों को चाटते हए उस चीते का पीछा किया। बड़ी-बड़ी दाढ़ों से युक्त वनचारी बाघ को भूख से कुटिल भाव धारण किये देख वह चीता अपने जीवन की रक्षा के लिये पुन: ऋषि की शरण में आया। तब सहवासजनित उत्तम स्नेह का निर्वाह करते हुए महर्षि ने चीते को बाघ बना दिया। अब वह अपने शत्रुओं के लिये अत्यन्त प्रबल हो उठा। प्रजानाथ! तदनन्तर वह बाघ उसे अपने समान रुप में देखकर मार न सका। उधर वह कुत्ता बलवान बाघ होकर मांस का आहार करने लगा। महाराज! अब तो उसे फल-मूल खाने की कभी इच्छा ही नहीं होती थी। जैसे वनराज सिंह प्रतिदिन जन्तुओं का मांस खाना चाहता है, उसी प्रकार वह बाघ भी उस समय मांसभोजी हो गया। इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासन पर्व में कुता और ऋषि का संवाद विषयक एक सौ सोलहवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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