महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 114 श्लोक 17-21

चतुर्दशाधिकशततम (114) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: चतुर्दशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-21 का हिन्दी अनुवाद

जो सदा लोगों की निन्‍दा में ही तत्‍पर रहता है, वह मनुष्‍य के शरीर रुप घर में रहने वाला भेड़िया है। वह सदा अशान्‍त बना रहता है। मतवाले हाथी के समान चीत्‍कार करता है और अत्‍यन्‍त भयंकर कुत्ते के समान काटने को दौड़ता है। श्रेष्ठ पुरुष को चाहिये कि उसे सदा के लिये त्‍याग दे। वह मूर्खों द्वारा सेवित पथ पर चलने वाला है। इन्द्रिय-संयम और विनय से कोसों दूर है। उसने शत्रुता का व्रत ले रखा है। वह सदा सब की अवनति चाहता है। उस पापात्‍मा एव पापबुद्धि मनुष्‍य को धिक्‍कार है। यदि ऐसे दुष्ट मनुष्य किसी पर आक्रमण करके उसकी निंदा करने लगें और उसे सुनकर भला मनुष्य उसका उत्तर देने के लिये उद्यत हो तो उसे रोककर कहे कि तुम दुखी न होओ; क्योंकि स्थिर बुद्धिवाले मनुष्य उच्च पुरुष का नीच के साथ होने वाले संयोग की अर्थात बराबरी की निंदा करते हैं। यदि क्रूर स्‍वभाव का मूर्ख मनुष्‍य कुपित हो जाय तो वह थप्‍पड़ मार सकता है, मुँह पर धूल अथवा भूसी झोंक सकता है और दाँत निकालकर डरा सकता है। उसके द्वारा सारी कुचेष्टाएँ सम्‍भव हैं। जो इस दृष्टान्‍त को सदा पढ़ता या सुनता रहता है और जो मनुष्‍य सभा में किसी अत्‍यन्‍त दुष्टात्‍मा द्वारा की हुई निन्‍दा को सह लेता है, वह दुर्जन मनुष्‍य से कभी वाणी द्वारा होने वाले निन्‍दाजनित किंचिन्‍मात्र दु:ख का भी भागी नहीं होता।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्‍तगर्त राजधर्मानुशासनपर्व में एक सौ चौहदवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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