महाभारत शल्य पर्व अध्याय 64 श्लोक 22-43

चतुःषष्टितम (64) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

Prev.png

महाभारत: शल्य पर्व:चतुःषष्टितम अध्याय: श्लोक 22-43 का हिन्दी अनुवाद

दूसरे राष्ट्रों पर आक्रमण किया और कितने ही राजाओं से दास की भाँति सेवाएँ लीं। जो अपने प्रिय व्यक्ति थे, उनकी सदा ही भलाई की। फिर मुझसे अच्छा अन्त किसका हुआ होगा? विधिवत वेदों का स्वाध्याय किया, नाना प्रकार के दान दिये और रोग रहित आयु प्राप्त की। इसके सिवा, मैंने अपने धर्म के द्वारा पुण्य लोकों पर विजय पायी है। फिर मेरे समान अच्छा अन्त और किसका हुआ होगा? सौभाग्य की बात है कि मैं न तो युद्ध में कभी पराजित हुआ और न दास की भाँति कभी शत्रुओं की शरण ली। सौभाग्य से मेरे अधिकार में विशाल राजलक्ष्मी रही है, जो मेरे मरने के बाद ही दूसरे के हाथ में गयी है। अपने धर्म का पालन करने वाले क्षत्रिय-बन्धुओं को जो भी अभीष्ट है, वैसी ही मृत्यु मुझे प्राप्त हुई है; अतः मुझसे अच्छा अन्त और किसका हुआ होगा? हर्ष की बात है कि मैं युद्ध में पीठ दिखाकर भागा नहीं। निम्न श्रेणी के मनुष्य की भाँति हार मानकर वैर से कभी पीछे नहीं हटा तथा कभी किसी दुर्विचार का आश्रय लेकर पराजित नहीं हुआ- यह भी मेरे लिये गौरव की बात है। जैसे कोई सोये अथवा पागल हुए मनुष्य को मार दे या धोखे से जहर देकर किसी की हत्या कर डाले, उसी प्रकार धर्म का उल्लंघन करने वाले पापी भीमसेन ने गदायुद्ध की मर्यादा का उल्लंघन करके मुझे मारा है। महाभाग अश्वत्थामा, सात्वतवंशी कृतवर्मा तथा शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य- इन सबको मेरी यह बात सुना देना। पाण्डवों ने अधर्म में प्रवृत होकर अनेकों बार युद्ध की मर्यादा तोड़ी है; अतः आप लोग कभी उनका विश्वास न करें।

इसके बाद आपके सत्यपराक्रमी पुत्र राजा दुर्योधन ने संदेश वाहक दूतों से इस प्रकार कहा- भीमसेन ने रणभूमि में अधर्म से मेरा वध किया है। अब मैं स्वर्ग में गये हुए द्रोणाचार्य, कर्ण, शल्य, महापराक्रमी वृषसेन, सुबलपुत्र शकुनि, महाबली जलसन्ध, राजा भगदत्त, महाधनुर्धर सोमदत्त, सिंधुराज जयद्रथ, अपने ही समान पराक्रमी दुःशासन आदि बन्धुगण, विक्रमशाली दुःशासनकुमार और अपने पुत्र लक्ष्मण- इन सबके तथा और भी जो बहुत से मेरे पक्ष के सहस्रों योद्धा मारे गये हैं, उन सबके पीछे मैं स्वर्ग में जाऊँगा। मेरी दशा उस पथिक के समान है, जो अपने साथियों से बिछुड़ गया हो। हाय! अपने भाइयों और पति की मृत्यु का समाचार सुनकर दुःख से आतुर हो अत्यन्त रोदन करती हुई मेरी बहिन दुःशला की क्या दशा होगी? पुत्रों और पौत्रों की बिलखती हुई बहुओं के साथ मेरे बूढ़े पिता राजा धृतराष्ट्र माता गान्धारी सहित किस अवस्था को पहुँच जायेंगे? निश्चय ही जिसके पति और पुत्र मारे गये हैं; वह कल्याणमयी विशाललोचना लक्ष्मण की माता भी सारा समाचार सुनकर तुरंत ही प्राण दे देगी। संन्यासी के वेष में सब ओर घूमने वाले प्रवचन कुशल चार्वाक[1] को यदि मेरी दशा ज्ञात हो जायेगी तो वे महाभाग निश्चय ही मेरे वैर का बदला लेंगे। तीनों लोकों में विख्यात पुण्यमय समन्तपंचक क्षेत्र में मृत्यु को प्राप्त होकर अब मैं सनातन लोकों में जाऊँगा।

मान्यवर! राजा दुर्योधन का यह विलाप सुनकर हजारों मनुष्यों की आंखों में आँसू आये और वे दसों दिशाओं में भाग चले। उस समय समुद्र, वन और चराचर प्राणियों सहित यह पृथ्वी भयानक रूप से हिलने लगी। सब ओर वज्र की-सी गर्जना होने लगी और सारी दिशाएं मलिन हो गयी। उन संदेश वाहकों ने आकर द्रोणपुत्र अश्वत्थामा से यथावत समाचार कह सुनाया। भारत! गदायुद्ध में भीमसेन का जैसा व्यवहार हुआ तथा राजा को जिस प्रकार धराशायी किया गया, वह सारा वृतान्त द्रोण पुत्र को बताकर दुःख से संतप्त हो वे बहुत देर तक चिन्ता में डूबे रहे। फिर शोक से व्याकुल-चित्त एवं आर्त होकर जैसे आये थे, वैसे चले गये।

इस प्रकार श्री महाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदापर्व में दुर्योधन का विलापविषयक चौसठवां अध्याय पूरा हुआ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आचार्य नीलकण्ठ की सम्मति के अनुशार चार्वाक संन्यासी मुनि के वेष में विचरने वाला एक नास्तिक राक्षस था।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः