पन्चचत्वारिंश (45) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
महाभारत: शल्य पर्व: पन्चचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 99-115 का हिन्दी अनुवाद
भरतवंशी नरेश! बहुत से पार्षद विचित्र वर्ण वाले और चितकबरे थे। कितने ही पार्षदों के शरीर का रंग चंवर तथा फूलों के मुकुट सा सफ़ेद था। कुछ लोगों के अंगों में श्वेत और लाल रंगों की पंक्तियां दिखायी देती थी। कुछ पार्षद एक दूसरे से भिन्न रंग के थे और बहुत से समान रंग वाले भी थे। किन्हीं-किन्हीं की कान्ति मोरों के समान थी। अब शेष पार्षदों ने जिन आयुधों को ग्रहण किया था, उनके नाम बता रहा हूं, सुना। कुछ पार्षद हाथों में पाश लिये हुए थे, कोई मुंह बाये खड़े थे, किन्हीं के मुख गदहों के समान थे, कितनों की आंखें पृष्ठभाग में थी और कितनों के कण्ठों में नील रंग का चिह्न था। बहुत से पार्षदों की भुजाएं ही परिघ के समान थीं। भरतनन्दन! किन्हीं के हाथों में शतघ्नी थी तो किन्हीं के चक्र। कोई हाथ में मुसल लिये हुए थे तो कोई तलवार, मुद्गर और डंडे लेकर खड़े थे। किन्हीं के हाथों में गदा, तोमर और भुशुण्डि शोभा पा रहे थे। वे महावेगशाली महामनस्वी पार्षद नाना प्राकर के भयंकर अस्त्र-शस्त्रों से सम्पन्न थे। उनका बल और वेग महान था। वे युद्ध प्रेमी महापार्षदगण कुमार का अभिषेक देखकर बड़े प्रसन्न हुए। वे अपने अंगों में छोटी-छोटी घंटियों से युक्त जालीदार वस्त्र पहने हुए थे। उनमें महान ओज भरा था। नरेश्वर! वे हर्ष में भरकर नृत्य कर रहे थे। ये तथा और भी बहुत से महापार्षदगण यशस्वी महात्मा कार्तिकेय की सेवा में उपस्थित हुए थे। देवताओं की आज्ञा पाकर देवलोक, अन्तरिक्ष लोक तथा भूलोक के वायुतुल्य वेगशाली शूरवीर पार्षद स्कन्द के अनुचर हुए थे। ऐसे-ऐसे सहस्रों, लाखों और अरबों पार्षद अभिषेक के पश्चात स्कन्द को चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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