त्रिचत्वारिंश (43) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
महाभारत: शल्य पर्व: त्रिचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 40-49 का हिन्दी अनुवाद
‘शक्र! महर्षियों ने इस अरुणा के जल को परम पवित्र बना दिया है। इस तीर्थ में पहले ही गुप्तरूप से उसका आगमन हो चुका था, फिर सरस्वती ने निकट आकर अरुणा देवी को अपने जल से आप्लावित कर दिया। ‘देवेन्द्र! सरस्वती और अरुणा का यह संगम महान पुण्य दायक तीर्थ है। तुम यहाँ यज्ञ करों और अनेक प्रकार के दान दो। फिर उसमें स्नान करके तुम भयानक पातक से मुक्त हो जाओगे’। जनमेजय! उनके ऐसा कहने पर इन्द्र ने सरस्वती के कुन्ज में विधिपूर्वक यज्ञ करके अरुणा में स्नान किया। फिर ब्रह्म हत्या जनित पाप से मुक्त हो देवराज इन्द्र हर्षोत्फुल्ल हृदय से स्वर्ग लोक में चले गये। भारत! नृपश्रेष्ठ! नमुचि का वह मस्तक भी उसी तीर्थ में गोता लगकर मनोवान्छित फल देने वाले अक्षय लोकों में चला गया। वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! पारमार्थिक कार्य करने वाले महात्मा बलराम जी उस तीर्थ में भी स्नान करके नाना प्रकार की वस्तुओं का दान करके धर्म का फल पाकर सोम के महान एवं उत्तम तीर्थ में गये। जहाँ पूर्व काल में साक्षात राजाधिराज सोम ने विधिपूर्वक राजसूय यज्ञ का अनुष्ठान किया था। उस श्रेष्ठ यज्ञ में बुद्धिमान विप्रवर महात्मा अत्रि ने होता का कार्य किया था। उस यज्ञ के अन्त में देवताओं के साथ दानवों, दैत्यों तथा राक्षसों का महान एवं भयंकर तारकामय संग्राम हुआ था, जिसमें स्कन्द ने तारकासुर का वध किया था। उसी में दैत्य विनाशक महासेन कार्तिकेय ने देवताओं का सेनापतित्व ग्रहण किया था। जहाँ वह पाकड़ का श्रेष्ठ वृक्ष है, वहाँ साक्षात कुमार कार्तिकेय इस तीर्थ में सदा निवास करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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