महाभारत शल्य पर्व अध्याय 35 श्लोक 84-90

पन्चत्रिंश (35) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व: पन्चत्रिंश अध्याय: श्लोक 84-90 का हिन्दी अनुवाद


इस प्रकार चन्द्रमा को जैसे शाप प्राप्त हुआ था और महान प्रभास तीर्थ जिस प्रकार सब तीर्थों में श्रेष्ठ माना गया, वह सारा प्रसंग मैंने तुमसे कह सुनाया। महाराज! चन्द्रमा उत्तम प्रभास तीर्थ में प्रत्येक अमावास्या को स्नान करके कान्तिमान एवं पुष्ट होते हैं। भूमिपाल! इसीलिये सब लोग इसे प्रभास तीर्थ के नाम से जानते हैं; क्योंकि उसमें गोता लगाकर चन्द्रमा ने उत्कृष्ट प्रभा प्राप्त की थी। तदनन्तर भगवान बलराम चमसोदेद नामक तीर्थ में गये। उस तीर्थ को सब लोग चमसोदेद के नाम से ही पुकारते हैं। श्रीकृष्ण के बड़े भाई हलधारी बलराम ने वहाँ विधिपूर्वक स्नान करके उत्तम दान दे एक रात रह कर बड़ी उतावली के साथ वहाँ से उदपान तीर्थ को प्रस्थान किया, जो मंगलकारी आदि तीर्थ है। राजेन्द्र जनमेजय! उदपान वह तीर्थ है, जहाँ उपस्थित होने मात्र से महान फल की प्राप्ति होती है। सिद्ध पुरुष वहाँ औषधियों (वृक्षों और लताओं) की स्निग्धता और भूमि की आर्द्रता देखकर अदृश्य हुई सरस्वती को भी जान लेते हैं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व में बलदेवजी की तीर्थ यात्रा के प्रसंग में प्रभास तीर्थ का वर्णन विषयक पैंतीसवां अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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