महाभारत शल्य पर्व अध्याय 30 श्लोक 18-38

त्रिंश (30) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व: त्रिंश अध्याय: श्लोक 18-38 का हिन्दी अनुवाद

आज एक रात विश्राम करके कल सबेरे रणभूमि में आप लोगों के साथ रहकर मैं शत्रुओं के साथ युद्ध करूंगा, इस में संशय नहीं है। संजय कहते हैं- राजन! दुर्योधन के ऐसा कहने पर द्रोणकुमार ने उस रणदुर्मद राजा से इस प्रकार कहा- ‘महाराज! उठो, तुम्हारा कल्याण हो। हम शत्रुओं पर विजय प्राप्त करेंगे। ‘राजन! मैं अपने इष्टापूर्त कर्म, दान, सत्य और जय की शपथ खाकर कहता हूँ कि आज सोमकों का संहार कर डालूंगा। ‘यदि यह रात बीतते ही प्रातःकाल रणभूमि में शत्रुओं को न मार डालूं तो मुझे सज्जन पुरुषों के योग्य और यज्ञकर्ताओं को प्राप्त होने वाली प्रसन्नता न प्राप्त हो।

नरेश्वर! मैं समस्त पाञ्चालों का संहार किये बिना अपना कवच नहीं उतारूंगा, यह तुम से सच्ची बात कहता हूँ। मेरे इस कथन को तुम ध्यान से सुनो’। वे इस प्रकार बात कर ही रहे थे कि मांस के भार से थके हुए बहुत से व्याध उस स्थान पर पानी पीने के लिये अकस्मात आ पहुँचे। उन्होंने वहाँ खड़े होकर उनकी एकान्त में होने वाली सारी बातें सुन लीं। परस्पर मिले हुए उन व्याधों ने दुर्योधन की भी बात सुनी। कुरुराज दुर्योधन युद्ध नहीं चाहता था तो भी युद्ध की अभिलाषा रखने वाले वे सभी महाधनुर्धर योद्धा उससे युद्ध छेड़ने के लिये बड़ा आग्रह कर रहे थे। राजन! उन कौरव महारथियों की वैसी मनोवृत्ति जानकर जल में ठहरे हुए राजा दुर्योधन के मन में युद्ध का उत्साह न देखकर और सलिल निवासी नरेश के साथ उन तीनों का संवाद सुनकर व्याध यह समझ गये कि ‘दुर्योधन इसी सरोवर के जल में छिपा हुआ है’।

पहले राजा दुर्योधन की खोज करते हुए पाण्डुकुमार युधिष्ठिर ने दैववश अपने पास पहुँचे हुए उन व्याघों से आपके पुत्र का पता पूछा था। राजन! उस समय पाण्डुपुत्र की कही हुई बात याद करके वे व्याध आपस में धीरे-धीरे बोले- ‘यदि हम दुर्योधन का पता बता दे तो पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर हमें धन देंगे। हमें तो यहाँ यह स्पष्ट रूप से ज्ञात हो गया कि राजा दुर्योधन इसी सरोवर में छिपा हुआ है। अतः जल में सोये हुए अमर्षशील दुर्योधन का पता बताने के लिये हम सब लोग उस स्थान पर चलें, जहाँ राजा युधिष्ठिर मौजूद हैं। ‘बुद्धिमान धनुर्धर भीमसेन को हम सब यह बता दें कि धृतराष्ट्र का पुत्र दुर्योधन जल में सो रहा है। ‘इससे अत्यन्त प्रसन्न होकर वे हमें बहुत धन देंगे। फिर हमें शरीर का रक्त सुखा देने वाले इस सूखे मांस को ढोकर व्यर्थ कष्ट उठाने की क्या आवश्यकता है?’।

इस प्रकार परस्पर वार्तालाप करके धन की अभिलाषा रखने वाले वे व्याध बड़े प्रसन्न हुए और मांस के बोझ उठाकर पाण्डव-शिविर की ओर चल दिये। महाराज! प्रहार करने में कुशल पाण्डवों ने अपना लक्ष्य सिद्ध कर लिया था; उन्होंने दुर्योधन को समरांगण में खड़ा न देख उस पापी के किये हुए छल-कपट का बदला चुकाकर वैर के पार जाने की इच्छा से उस संग्रामभूमि में चारों ओर गुप्तचर भेज रखे थे। धर्मराज के उन सभी गुप्तचर सैनिकों ने एक साथ लौट कर यह निवेदन किया कि ‘राजा दुर्योधन लापता हो गया है’। भरतश्रेष्ठ! उन गुप्तचरों की बात सुनकर राजा युधिष्ठिर घोर चिन्ता में पड़ गये और लंबी सांस खींचने लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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