महाभारत शल्य पर्व अध्याय 28 श्लोक 21-40

अष्टाविंश (28) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

Prev.png

महाभारत: शल्य पर्व: अष्टाविंश अध्याय: श्लोक 21-40 का हिन्दी अनुवाद

उन सब को भागते देख राजा दुर्योधन ने इस प्रकार कहा-‘अरे पापियो! लौट आओ और युद्ध करो। भागने से तुम्हें क्या लाभ होगा? जो धीर वीर रणभूमि में पीठ न दिखाकर प्राणों का परित्याग करता है, वह इस लोक में अपनी कीर्ति स्थापित करके मृत्यु के पश्चात उत्तम लोकों में सुख भोगता है। राजा दुर्योधन के ऐसा कहने पर सुबल पुत्र शकुनि के पीछे चलने वाले सैनिक ‘अब हमें मृत्यु ही युद्ध से लौटा सकती है’ ऐसा संकल्प लेकर पुनः पाण्डवों पर टूट पड़े। राजेन्द्र! वहाँ धावा करते समय उन सैनिकों ने बड़ा भयंकर कोलाहल मचाया। वे विक्षुब्ध समुद्र के समान क्षोभ में भरकर सब ओर छा गये। महाराज! शकुनि के सेवकों को इस प्रकार सामने आया देख विजय के लिये उद्यत हुए पाण्डव वीर आगे बढ़े।

प्रजानाथ! इतने ही में स्वस्थ होकर दुर्धर्ष वीर सहदेव ने हंसते हुए से दस बाणों से शकुनि को बींध डाला और तीन बाणों से उसके घोड़ों को मारकर हंसते हुए से अनेक बाणों द्वारा सुबल पुत्र के धनुष को भी टूक-टूक कर डाला। तदनन्तर दूसरा धनुष हाथ में लेकर रणदुर्मद शकुनि ने नकुल को साठ और भीमसेन को सात बाणों से घायल कर दिया। महाराज! रणभूमि में पिता की रक्षा करते हुए उलूक ने भीमसेन को सात और सहदेव को सत्तर बाणों से क्षत-विक्षत कर दिया। तब भीमसेन ने समरागंण में नौ बाणों से उलूक को, चौसठ बाणों से शकुनि को और तीन-तीन बाणों से उसके पाश्वरक्षकों को भी घायल कर दिया। भीमसेन के नाराचों को तेल पिलाया गया था। उनके द्वारा भीमसेन के हाथ से मार खाये हुए शत्रु सैनिकों ने रणभूमि में कुपित होकर सहदेव को अपने बाणों की वर्षा से ढक दिया, मानो बिजली सहित मेघों ने जल की धाराओं से पर्वत को आच्छादित कर दिया हो।

महाराज! तब प्रतापी शूरवीर सहदेव ने एक भल्ल मारकर अपने ऊपर आक्रमण करने वाले उलूक का मस्तक काट डाला। सहदेव के हाथ से मारा गया उलूक युद्ध में पाण्डवों को आनन्दित करता हुआ रथ से पृथ्वी पर गिर पड़ा। उस समय उसके सारे अंग खून से लथपथ हो गये थे। भारत! अपने पुत्र को मारा गया देख वहाँ शकुनि का गला भर आया। वह लंबी सांस खींचकर विदुर जी की बातों को याद करने लगा। अपनी आंखों में आंसू भरकर उच्छ्वास लेता हुआ दो घड़ी तक चिन्ता में डूबा रहा।

महाराज! इसके बाद सहदेव के पास जाकर उसने तीन बाणों द्वारा उन पर प्रहार किया। उसके छोड़े हुए उन बाणों का अपने शर समूहों से निवाराण करके प्रतापी सहदेव ने युद्ध स्थल में उसका धनुष काट डाला। राजेन्द्र! धनुष कट जाने पर उस समय सुबल पुत्र शकुनि ने एक विशाल खड्ग लेकर उसे सहदेव पर दे मारा। प्रजानाथ! शकुनि के उस घोर खड्ग को सहसा आते देख समरांगण में सहदेव ने हंसते हुए से उसके दो टुकड़े कर डाले। उस खड्ग को कटा हुआ देख शकुनि ने सहदेव पर एक विशाल गदा चलायी; परंतु वह विफल होकर पृथ्वी पर गिर पड़ी। यह देख सुबल पुत्र क्रोध से जल उठा। अब की बार उसने उठी हुई कालरात्रि के समान एक महा भयंकर शक्ति सहदेव को लक्ष्य करके चलायी।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः