महाभारत शल्य पर्व अध्याय 25 श्लोक 45-63

पंचविंश (25) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व: पंचविंश अध्याय: श्लोक 45-63 का हिन्दी अनुवाद

वहाँ जो क्षत्रिय युद्ध कर रहे थे, उनके अधिकांश वाहन नष्ट हो गये थे। शरीर क्षत-विक्षत हो रहे थे। वे बाणों से पीड़ित होकर कुछ अस्पष्ट वाणी में बोले-हम लोग जिससे घिरे हैं, इस सारी सेना को मार डालें। ये सारे पाण्डव गज सेना का संहार करके हमारे समीप चले आ रहे हैं, उनकी बात सुनकर महारथी अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा- ये सभी दृढ़ धनुर्धर शूरवीर पांचाल राज की उस दुःसह सेना का व्यूह तोड़कर, रथसेना का परित्याग करके जहाँ शकुनि था वहीं जा पहुँचे।

उस सब के आगे बढ़ जाने पर धृष्टद्युम्न आदि पाण्डव आपकी सेना का संहार करते हुए वहाँ आ पहुँचे। हर्ष और उत्साह में भरे हुए उन महारथियों को आक्रमण करते देख आपके पराक्रमी वीर उस समय जीवन से निराश हो गये। आपकी सेना के अधिकांश योद्धाओं का मुख उदास हो गया। उन सब के आयुध नष्ट हो गये थे और वे चारों ओर से घिर गये थे। राजन! उन सबकी वैसी अवस्था देख मैं जीवन का मोह छोड़कर अन्य चार महारथियों को साथ ले हाथी और घोड़े दो अंगोवाली सेना से मिलकर धृष्टद्युम्न की सेना के साथ युद्ध करने लगा। मैं उसी स्थान में स्थित होकर युद्ध कर रहा था, जहाँ कृपाचार्य मौजूद थे; परन्तु किरीटधारी अर्जुन के बाणों से पीड़ित होकर हम पाँचों वहाँ से भागकर महाभयंकर धृष्टद्युम्न के पास जा पहुँचे।

वहाँ उनके साथ हम लोगों का बड़ा भारी युद्ध हुआ। उन्होंने हम सबको परास्त कर दिया। तब हम वहाँ से भी भाग निकले। इतने ही में मैंने महारथी सात्यकि को अपने पास आते देखा। वीर सात्यकि ने युद्धस्थल में चार सौ रथियों के साथ मुझ पर धावा किया। थके हुए वाहनों वाले धृष्टद्युम्न से किसी प्रकार छूटा तो मैं सात्यकि की सेना में आ फँसा; जैसे कोई पापी नरक में गिर गया हो। वहाँ दो घड़ी तक बड़ा भयंकर एवं घोर युद्ध हुआ। महाबाहु सात्यकि ने मेंरी सारी युद्ध साम्रगी नष्ट कर दी और जब मैं मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा, तब मुझे जीवित ही पकड़ लिया।

तदनन्तर दो ही घड़ी में भीमसेन ने गदा से और अर्जुन ने नाराचों से उस गजसेना का संहार कर डाला। चारों ओर पर्वताकार विशालकाय हाथी पड़े थे, जो भीमसेन और अर्जुन के आघातों से पिस गये थे। उनके कारण पाण्डवों का आगे बढ़ना अत्यन्त दुष्कर हो गया था। महाराज! तब महाबली भीमसेन ने बड़े-बड़े़ हाथियों को खींचकर हटाया और पाण्डवों के लिये रथ जाने का मार्ग बनाया। इधर अश्वत्थामा, कृपाचार्य और सात्वतवंशी कृतवर्मा ये रथसेना में आपके महारथी पुत्र शत्रुदमन राजा दुर्योधन को न देखकर उसकी खोज करने लगे। वे धृष्टद्युम्न का सामना करना छोड़कर जहाँ शकुनि था, वहाँ चले गये। वर्तमान नरसंहार में राजा दुर्योधन को न देखने के कारण वे उद्विग्न हो उठे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्व में दुर्योधन का पलायन विषयक पचीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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