महाभारत शल्य पर्व अध्याय 11 श्लोक 24-44

एकादश (11) अध्याय: शल्य पर्व

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महाभारत: शल्य पर्व: एकादश अध्याय: श्लोक 24-44 का हिन्दी अनुवाद

राजन! तत्पश्चात सहस्रों प्रभद्रक और सोमक योद्धा शल्य के बाणों से घायल होकर गिरे और गिरते हुए दिखायी देने लगे। शल्य के बाण भ्रमरों के समूह, टिड्डियों के दल और मेघों की घटा से प्रकट होने वाली बिजलियाँ के समान पृथ्वी पर गिर रहे थे। शल्य के बाणों की मार खाकर पीड़ित हुए हाथी, घोडे़, रथी और पैदल सैनिक गिरने, चक्कर काटने और आर्तनाद करने लगे। प्रलयकाल में प्रकट हुए यमराज के समान मद्रराज शल्य क्रोध से आविष्ट हुए पुरुष की भाँति अपने पुरुषार्थ से युद्धस्थल में शत्रुओं को बाणों द्वारा आच्छादित करने लगे। महाबली मद्रराज मेघों की गर्जना के समान सिंहनाद कर रहे थे। उनके द्वारा मारी जाती हुई पाण्डव सेना भागकर अजाशत्रु कुन्तीकुमार युधिष्ठिर के पास चली गयी। शीघ्रतापूर्वक हाथ चलाने वाले शल्य ने युद्धस्थल में पैने बाणों द्वारा पाण्डवसेना का मर्दन करके बड़ी भारी बाणवर्षा के द्वारा युधिष्ठिर को भी गहरी चोट पहुँचायी।

तब क्रोध में भरे हुए राजा युधिष्ठिर पैदलों और घुड़सवारों के साथ आते हुए शल्य को अपने तीखें बाणों से उसी प्रकार रोक दिया, जैसे महावत अंकुशों की मार से विशालकाय हाथी को आगे बढ़ने से रोक देता है। उस समय शल्य ने युधिष्ठिर पर विषैले सर्प के समान एक भयंकर बाण का प्रहार किया। वह बाण बड़े वेग से महात्मा युधिष्ठिर को घायल करके पृथ्वी पर गिर पड़ा। यह देख भीमसेन कुपित हो उठे। उन्होंने सात बाणों से शल्य को बींध डाला। फिर सहदेव ने पाँच, नकुल ने दस और द्रौपदी के पुत्रों ने अनेक बाणों से शत्रुसूदन शूरवीर शल्य को घायल कर दिया। महाराज! जैसे मेघ पर्वत पर पानी बरसाते हैं, उसी प्रकार वे शल्य पर बाणों की वर्षा कर रहे थे। शल्य को कुन्ती के पुत्रों द्वारा सब ओर से अवरुद्ध हुआ देख कृतवर्मा और कृपाचार्य क्रोध में भरकर उनकी ओर दौडे़ आये। साथ ही महापराक्रमी उलूक, सुबलपुत्र शकुनि, महाबली अश्वत्थामा तथा आपके सम्पूर्ण पुत्र भी धीरे-धीरे वहाँ आकर रणभूमि में शल्य की रक्षा करने लगे।

कृतवर्मा ने क्रोध में भरे हुए भीमसेन को तीन बाणों से घायल करके भारी बाण वर्षा के द्वारा आगे बढ़ने से रोक दिया। तत्पश्चात कुपित हुए कृपाचार्य ने धृष्टद्युम्न को अपनी बाण वर्षा द्वारा पीड़ित कर दिया। शकुनि ने द्रौपदी के पुत्रों पर और अश्वत्थामा ने नकुल-सहदेव पर धावा किया। योद्धओं मे श्रेष्ठ, भयंकर तेजस्वी और बलवान दुर्योधन ने समरांगण में श्रीकृष्ण और अर्जुन पर चढ़ाई की तथा बाणों द्वारा उन्हें गहरी चोट पहुँचायी। प्रजानाथ! इस प्रकार जहाँ-तहाँ आपके सैनिकों के शत्रुओं के साथ सैकड़ों भयानक एवं विचित्र द्वन्द्वयुद्ध होने लगे। कृतवर्मा ने युद्धस्थल में भीमसेन के रीछ के समान रंग वाले घोड़ों को मार डाला। घोड़ों के मारे जाने पर पाण्डुनन्दन भीमसेन रथ की बैठक से नीचे उतरकर हाथ में गदा ले युद्ध करने लगे, मानो यमराज अपना दण्ड उठाकर प्रहार कर रहे हों। मद्रराज शल्य ने अपने सामने आये हुए सहदेव के घोड़ों को मार डाला। तब सहदेव ने भी शल्य के पुत्र को तलवार से मार गिराया। आचार्य द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा अधिक क्रुद्ध न होकर हँसते हुए से दस दस बाणों द्वारा द्रौपदी के वीर पुत्रों मे से प्रत्येक को घायल कर दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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