सप्तत्रिंश (37) अध्याय: विराट पर्व (पाण्डवप्रवेश पर्व)
महाभारत: विराट पर्व: सप्तम अध्याय: श्लोक 16-18 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! इस प्रकार वहाँ राजा युधिष्ठिर तथा मत्स्य नरेश की प्रथम भेंट हुई। जैसे भगवान् विष्णु का वज्रधारी इन्द्र से मिलन हुआ हो, उसी प्रकार विराट नरेश का राजा युधिष्ठिर के साथ समागम हुआ। युधिष्ठिर के स्वरूप का दर्शन विराटराज को बहुत प्रिय लगा। जब वे आसन पर बैठ गये, तब राजा विराट उन्हें एकटक निहारने लगे। उनके दर्शन से वे तृप्त ही नहीं होते थे। जैसे इन्द्र अपनी कान्ति से स्वर्ग की शोभा बढ़ाते हैं, उसी प्रकार राजा युधिष्ठिर उस सभा को प्रकाशित कर रहे थे। धीर स्वभाव वाले नरश्रेष्ठ युधिष्ठिर उस समय राजा विराट के साथ इस प्रकार अच्छे ढंग से मिलकर और उनके द्वारा परम आदर-सत्कार पाकर वहाँ सुखपूर्वक रहने लगे। उनका वह चरित्र किसी को भी मालूम नहीं हुआ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत पाण्डवप्रवेशपर्व में युधिष्ठिर प्रवेश विषयक सातवाँ अध्याय पूरा हुआ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
|